Book Title: Samyak Charitra Chintaman Author(s): Pannalal Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 5
________________ धारी होते हैं जो गृहस्थाश्रमका त्याग करते हैं । आचार्य समन्तभद्रने लिखा है कि-संसार अशरण है, अशुभ है। अनित्य है, दुःख रूप है तथा अनात्मरूप है। इसके विपरोत संसारसे मुक्ति शरणरूप है, शुभरूप है, नित्य-स्थायी है, सुखरूप है तथा आस्मके स्वस्वभावरूप है। . __ इसी आत्म-स्वभावकी प्राप्तिके लिए सम्यग्-दर्शन-ज्ञान-चारित्र है। इन तीनोंके ऐक्यको ही मोक्षका मार्ग कहा है। एक-एकसे या दो दोसे मुक्ति सम्भव नहीं है, अतः तोनोंको एकताको ही उमा स्वामीने तत्त्वार्थ -सूत्र में प्रथम सूत्र द्वारा मोक्षमार्ग प्रतिपादित किया है । सम्यक्त्व चारों गतियोंमें किन हो जोवोंमें पाया जाता है. सम्यकज्ञान भो उसो कारण हो जाता है, परन्तु सम्यक्चारित्र मात्र मनुष्य पर्यायमें हो हो सकता है, अन्यत्र नहीं। यद्यपि देश-चारित्र किसी-किसी नियम भी पाया जाता है. पर उसकी बड़ी विरलता है और वह स्वर्ग जानेका कारण बनता है, मोक्षका कारण नहीं। सकल-चारित्र मनुष्योंमें उनमें भी कर्मभूमिके मनुष्यों में पाया जाता है । कर्म भूमिके भो उत्सपिणोके तृतीय कालमें और अवस पिणोके चतुर्थ कालमें हो सम्भव है--पंचम, षष्ठ काल में नहीं। जो अपवाद-पद्धतिमें पंचमकालके प्रारम्भमें मुक्तिपधारेबे भी चतुर्थकाल में उत्पन्न हुए थे। हां इस हण्डावसपिणो काल में तृतोय कालमें भो मुक्तिगमनका अपवाद पाया जाता है, पर सामान्य नियम तो यहो है. जिसका ऊपर विवरण किया है। सम्यक् चारित्र दो रूपोंमें देखा जाता है, एक तो आभ्यन्तर परिणाम विशुद्धिके रूप में और दुसरा आन्तरिक शुद्धि वालेको बाह्य क्रियाके रूपमें। आभ्यन्तर चारित्रके साथ-साथ जो साधकका बाह्याचरण है वही व्यवहारसे चारित्र कहा जाता है क्योंकि वह शरोराश्रित क्रिया है। प्रकारान्तरसे यह कहा जा सकता है कि आन्तरिक क्रिया आत्म-विशुद्धि है और शारीरिक क्रिया उसोका बाह्यरूप है। चूंकि देह-पर है अतः उसको क्रिया पराश्चित होने से व्यवहारमय से चारित्र है और आभ्यन्तरशुद्धि आत्मपरिणमन रूप क्रिया है, अतः वह निश्चयसे चारित्र है। निश्चयचारित्र मोक्षका साक्षात्कारण और व्यवहार चारित्र उस आभ्यन्तरको शुद्धिका कारण है। यदि साधक आन्तरिक शुद्धिका प्रयत्न न करे और मात्र बाह्म आचार आगमानुसार भो करे तो उससे माक्ष नहीं होता। इनमें साध्य-साधक भाव हो तो दोनोंको भी कारण मान लेते हैं । निश्चय चारित्रको मुक्तिका साक्षात् कारण और तत्साधक व्यवहारPage Navigation
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