Book Title: Samyag Gyan Charitra 01
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 4
________________ प्रकाशकीय आचार्य नेमीचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती विरचित गोम्मटसार जीवकाण्ड की प्राचार्यकल्प पण्डित प्रवर टोडरमलजी कृत भापा टीका, जो सम्यग्जान चन्द्रिका के नाम से विख्यात है, के प्रथम खण्ड का प्रकाशन करते हुए हमे हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। दिगम्बराचार्य नेमीचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती करणानुयोग के महान प्राचार्य थे । गोम्मटमार जीवकाण्ड, गोम्मटसार कर्मकाण्ड, लन्विसार, भपणासार, त्रिलोकसार तथा द्रव्यसग्रह ये महत्त्वपूर्ण कृतियाँ आपकी प्रमुख देन है । पण्डित प्रवर टोडरमलजी ने गोम्मटसार जीवकाण्ड व कर्मकाण्ड तथा लब्धिसार और क्षपणासार की भापा टीकाऐ पृथक्-पृथक् बनाई थी। चूंकि ये चारो टीकाएँ परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित तथा सहायक थी, अत सुविधा की दृष्टि मे उन्होने उक्त चारो टीकामो को मिलाकर एक ही ग्रन्थ के रूप मे प्रस्तुत कर दिया तथा इम ग्रन्थ का नामकरण उन्होने 'सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका किया । इस सम्बन्ध मे टोडरमलजी स्वय लिखते है या विधि गोम्मटसार, लब्धिसार ग्रन्थनिकी, भिन्न-भिन्न भापाटीका कीनी अर्थ गायक । इनिक परस्पर सहायकपनी देख्यो, तातै एक कर दई हम तिनको मिलायक ।। सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका धर्यो है याकी नाम, ___ सोई होत है सफल नानानन्द उपजायकै । कलिकाल रजनीमे अर्थ को प्रकाश करे, यातै निज काज कीजै इप्ट भाव भायक ।। इन ग्रन्थ की पीठिका के सम्बन्ध मे मोक्षमार्ग प्रकाशक को प्रस्तावना लिखते हुए दां० हरमचन्दजी भारिल्ल लिखते है "मम्यग्जानचन्द्रिका विवेचनात्मक गद्य शैली मे लिखी गई है। प्रारंभ मे इकहत्तर पृट की पीठिका है। आज नवीन शैली से सम्पादित ग्रन्थो मे भूमिका का बड़ा महत्त्व माना जाता है। जैली के क्षेत्र मे लगभग दो सा वीस वर्ष पूर्व लिखी गई सम्यग्नानचन्द्रिका की पोठिया याधुनिक भूमिका का प्रारमिक रूप है। किन्तु भूमिका का आद्य रूप होने पर भी उममे प्रांटना पाई जानी है, उसमे हलकापन वही भी देखने को नहीं मिलता। इसके पढने से न्य या पूग हाद ग्बुल जाता है एव इस गूढ ग्रन्य के पढ़ने मे आने वाली पाठक की समस्त ठिनाल्यां दूर हो जाती है। हिन्दी आत्मकथा साहित्य मे जो महत्त्व महाकवि पण्डित बनानगीदान के 'अर्द्धकथानक' को प्राप्त है, वही महत्त्व हिन्दी भूमिका साहित्य में सम्यग्ज्ञान नन्दिरा पीठिका का है।"

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