Book Title: Samattam
Author(s): Bhanuben Satra
Publisher: Ajaramar Jain Seva Sangh

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Page 504
________________ मातहतश्रात्य गया दवा हि तचम हतका पोकानं । सुरतानी लिस्त समजिनपूपरूपमाध नासत्यवचननामाहारषिजी: नमज्ञानसी मिसमासानिष मताला तर मदबल सीताला श्रीनगरी सॅली मन ही नहीं का जाला तर नियमका प काका लाग १३. श्रीहन सी ६ध्या म०. ह्याईए कि मामाला मायस्व मिसारधारा मन नह निस्तगतामा लालमनलमा मुक्तः मजीकरी का समान विचरी दमा साध६ सुगतपथ १६ टाल ! पा नामाटातीऊर सनावरामधुनीत 'एभत्री सहरा परीमा बावीस र रेष्पषमता त पतपचा निहारी। सनरा|२| घो एंडी वारा षमनीवर हर गंध गंधा स्पोपशाबल (लतामाह नव्य त्या हाकमधाहर पिडीएए उत्री सिपूरा: चली नारी रूप न नर एक हाईलाइनर गम्पम्पलपदाघीदच्च ति विदकर इक एकामा हारण: २० : निद्याद्यापस पर प्रीता हिचा ध्यान की वचनपीमा श्रदए । બાવ્યા O वारा पकाना [ह]]]फर रामजीवना काय जड़नी । ॐ एचदन ऊगड़ा दारा सा पास र टिन धरा नागदे बलमाशाह शमवानिचवा डिंधरना। श्रीना से सांरगटा लपंडगीर हिसुनी लागा! पहिली वायएमपा लिम्हा श्रीनीवात्तन कराता कही यि। बीडीवायएमपाल जी जीवा डिखी बिना ड्याहिं। बि घडी धान कटा लिहारी नारीरूपनश्नर घि कही चावी वाम एक हिना । पांच मोनरनारीना से या त्या व्हाघी वगालार हितो म्हारी ष्पापुरा वालागनारसुनावतीवा डिएलही शञ्चल एवा मिलन ऋषिराजा वाडिमातमी कही हाचा चहार करडून ही जा कोशवा 'तिमीरा विश्वासतकाचा एगार नुकुर ता उमादा जिला हाकलू६ा वाप पंचमहातपालिसही। जीवशात न कर कही क्राधमांनमाया नलाना एच्या ए विनदी घोल मघवा इष्णावत ही मानवाचन मोदिकही का नीरपाईन ही सदा। बीजा तिन पावश्क दा ॥३ पानांनव्यानरमा दिरती चम्पनिं कूदान यजायत। श्रन्य करत जलाव कही। जालित सान दिनही वाजवाडा वदन ही वाय वीजता वास्तवातापि रायचू टियूट दिन ही हरी|र्टिन मा 56 ૪૬૫

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