Book Title: Samattam
Author(s): Bhanuben Satra
Publisher: Ajaramar Jain Seva Sangh
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कदाचा नीरनश्नंही ज्ञानवाक्यनष्ट टिकही। घी हरजन टाटा घाय। ज्ञानक्षत्रान्या हायाश हाचीषा साया यिसंहा मका (वामीतलु घाया क विज्ञनक हिनवंत घीदी का ज्ञानी रायगडाला दिस पाटक समजी नजरूपिनचा विनर होऊ लो! माहिपाप करता। एकाध मान (माहामाया वाधू यी दावत्रा फ़रताना नुतातमाटा कफमाल तिलरी जाऊ क्या कनक नो लोटो रहाला ज्ञानवंत ते रमा टोहाना लीना निश्त्री लावा धायमईणवी ग्यास करधाडिघकायमवाधिः सद्दयरो लाग्दा नाईणाधना विकरिमं दीरमा टा। करतो वा मात्रा घणकाल लगिं: तिचा लिनं विलापारालाई वडस फराज वां हांण करा विश्वापतधातनी नात्यः पापत तवल्यधारा नाष्यं सूकीत बाप हमा नाई। एकधन पामा नगरवसा विद्याती गवामकरादिः चत्यमा हिपरं ता लाई पानी गन विद्याचिए हालाई ! एथनघाइए परगटयां मिः समुदावलिमांजा इच्पनचोरऊ वज्रनिवासिन्दाली लिराय । १०। हाला ई०! ज्ञानरूपधन (कान वाली ज्याहां जाइत्याहांनविसायमूलटनर कहा यिन हा शिलोह मगरबा मुं वि॥११॥
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काम्या सार्यात हनी लही | की पल पुत्र तस ऊदरिस स्मृतिपाम्यात सिटी थापाका गलिघाडी शिंद जिंकायलऊमाया चारा स्मायक हिसूर्णिमाहाराष्ट्राणिवा लिकरण राह्या॥१८ मूत्रसती सुदरी!
गलान बिल निवा (का कुरा वास कुलोजन का बाल अक जिन मल गए सातिदहारणवचनसः 'लीकापल इकारखना चलेनिश रिधशिविनिवचन क हि पाहा माया वाद्यानी तान्र्ताय । २० मधुरवच नसंतोषी माय जमुनीक हिसावधानताताना मात्रा एण्वीद्या ईत्याही पदाचा श्शावचन
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