Book Title: Samattam
Author(s): Bhanuben Satra
Publisher: Ajaramar Jain Seva Sangh

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Page 527
________________ हिपसदारीन निंप्रविनदी भीक दाणकन मुम्राशय मीपणा चाहि मदराशिग सही एका लाककारही ती सात पावडरीकटिबन्ध ती होनी रंटजाल हि विना लाचन लवहिनी माग डंडा कायम मारिवा) 'लीपचा मदशश्रापात से दिवास्वामी नारदशि शालाक पंक करने स्मीनं धातु कधीह पती ८६ टाल दीघरघातिवरा सागाडी। सास्त्रि नही नदीनृपकायार: श्रापीहर का मही पण पंडीत एक महाएमा माला एसइ टाला / ताइक रफ नृप का क्क दरीसमः प्रापणी पू॥ दारीद्रबंध गया शुणठाऊ हाय का दाम मुजराताष्ट्र की भी मणिमाहा से मि सादांनदी ज्ञामपि दारात तब विभाग का नीतिगत कहश्वायर : चटक कहिदाय द्वेष हवी ज्ञारामा हिनता मनमो रोपक नराया काय र सरस्वती-घमा हिमाली लष्‍मातरापी धारा कातिनिधीकान वागैरश्रम म २८ • ताजीनमहाएर (रारागाहषत्र ऊ माशि। [ए] डूषीत ही उऊन गरमाई पाएर कार्तिन र ही उगा महा हासूनी हीन दमिदमवादति गई मातापि नहीं चापना वनफरती सहीत एइका एमाना लगा पाटो कार्तिका मगदान लहर। श्रा पाराज पायिन मिशराऊदी नागरामनीनल शिमली वारा धमका कच न कामना नवराणि नीरधारा नवी राषिनी राज्याशिता मराय राज्याघपक हिंनी शाह ड्याहा ईश्वरतमनीक हि शादीश लयंगालदत्यार६६ सिराय के दिखनी श्रावासा! शहा नावली तहसिः ४ चा विश्वासाद मधरिमनमा दाब रंग राष्ट्रतिक तारलग वतनीवरल्पे गए पाईक रं मागासहीचपन का लाए बिपास प्रयाग हिंगही वृत्तातसह त्याहाका मार्डी माहा काला दाद जिसस घालब लिला ॥ म्पो गृहविचाप वचनपहर एक सहिसमा मारा। जिन पूजा निंर कार बिर दि निदानादामा ६ च दामघर चित्र पतित्या हि श्रावकाशम्रकीतर घाया। बारह तानाहधारी कमत ३० ४८८

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