Book Title: Samarsinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 255
________________ ૨૧૮ समरसिंह श्रीविमलाचल मंडन श्रीमादीश्वर जिन के उद्धारक श्रीसमरसिंह के जीवन वृतान्त का इतना पता लगने का श्रेय श्रीककसूरीश्वर को है । जिन के बनाए हुए वि. सं. १३९३ के प्रबंध से समरसिंह के जीवनपर इतना प्रकाश डाला जा सका है। श्रीपुंडरीकगिरि के मुकुटरूप तीर्थनाथ की संस्थापना विधिविधान पूर्वक करानेवाले आचार्य श्रीगुरु चक्रवती श्रीसिद्धसूरि थे जिन के सुयोग्य शिष्यरत्न श्रीककसूरिजीने उपरोक्त प्रबंध कंजरोटपुर में उपरोक्त संवत् में लिखा था । आत्महितार्थी मुनिकलश साधुने भी इस ग्रंथ के लिखने में सहायता दी थी। बड़े खेद का विषय है कि हमारे चरितनायकजीद्वारा स्थापित हुए आदीश्वर के बिंब को भी कालक्रम में दुष्ट म्लेच्छोंने खंडित कर दिया था । अतः वि. सं. १५८७ में राजकोठारीकुलदिवाकर श्रीकर्माशाहने तीर्थोद्धार करा प्राचार्य श्रीविद्यामंडनसूरि द्वारा आदीश्वर प्रभु की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई थी। यदि पाठकोंने इस चरित को अपनाया तो श्रीकर्माशाह का जीवन भी शीघ्र ही पाप की सेवा में उपस्थित करने का प्रयत्न करूंगा। पात्रे त्यागी गुणे रागी भोगी परिजनै सह । शास्त्रे योद्धा रणे योद्धा पुरुषः पंचलपणः ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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