Book Title: Samarsinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 285
________________ ૨૮ पमरसिंह गामागरपुरवोलिंतो वलिउ सेतुजि संपत्तो । आदिपुरीपाजह चडिऊ ए । वंदिऊ ए वंदिऊ ए वंदिऊ ए मरुदेविपूतो ॥२॥ अगरि कपूरिहिं चंदणिहि मृगमदि मंडणु कीय । कसमीराकुंकुमरसिहि अंगिहिं ए अंगिहि ए अंगो अंगि रचीय । जाइबउलविहसेवत्रिय पूजितु नाभिमल्हारो । मणुयजनमुफलु पामिऊ ए । भरियऊ ए भरियऊ ए भरियऊ सुकृतभंडारो ॥३॥ सोहग ऊपरि मंजरिय बीजी य सेत्रुजि उधारि । ........ठिय ए समरऊ ए समरऊ ए समरु आविउ गुजरात । पिपलालीय लोलियणे पुरे राजलोकु रंजेई । छडे पयाणे संचरए राणपुरे राणपुरे राणपुरे पहुचेई ॥ ४ ॥ वढवाणि न विलंबु किउ जिमिउ करीरे गामि । मंडलि होईउ पाडलए। नमियऊ ए नमियऊ ए नमियऊ नेमि सु जीवतसामि । संखेसर सफलीयकरणु पूजिउ पासजिणिदो। सहजुसाहु तहिं हरषियउ ए । देषिऊ ए देषिऊ ए देषिऊ फणिमणिधुंदो ॥ ५ ॥ डुंगरि डरिउ न खोहि खलिउ गलिउ न गिरवरि गब्बो । संघु सुहेलद प्राणिउ ए । संघपती ए संघपती ए संपपतिपरिहि अपुल्चो ॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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