Book Title: Samarsinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 286
________________ समरारास । सजण सजण मिलीय तर्हि अंगिहिं अंगु लियंते । मनु विहसइ ऊलटु घाउ ए । तोड ए तोड ए तोढरू कंठि ठवंते ॥ ७ ॥ मंत्रिपुत्रह मीरह मिलिय अनु ववहारियसार । संघपति संघु वधावियउ । कंठिहिं ए कंठिर्हि ए कंठिहि घालिय जयमाल । तुरियघाटतरवरि य तहि समरउ करइ प्रवेसु । अहिलपुर बद्धामणउ ए । अभिनवु ए अभिनवु ए अभिनवु पुत्रनिवासो ॥ ८ ॥ २४९ संवच्छरि इकहतरए था पिउ रिसहजिर्लिंदो । चैत्रवदि सातभि पहुत घरे नंदऊ ए नंदऊ ए नंदऊ जा रविचंदो ६ पासडसूरिहिं गणहरह नेऊभगच्छनिवासो । तसु सीसिहिं भंबदेवसूरिहिं । रचियऊ ए रचियऊ ए रचियऊ समरारासो । -बहु रासु जो पढइ गुणइ नाचि जिबहरि देह | श्रवणि सुबइ सो बयठऊ ए । तीरथ ए तीरथ ए तीरथजात्रफलु लेई ॥ १० ॥ ॥ इति श्रीसंघपतिसमरसिंहरासः ॥ स मा स. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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