Book Title: Samarsinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 284
________________ २१७ समरा रास. एकादशी भाषा. संघु रयखायरतीरि गहगहए गुहिरगंभीरगुणि । प्राविउ दीवनरिंदु सामुहउ ए संघपतिसबदु सुणि ॥ १॥ हरषिउ हरपालु चीति पहुतउ ए संघु मोलविकरे । पमणई दीवह नारि संघह ए जोअण ऊतावली ए। माउला वाहिन वाहि वेगुलइ ए चलावि प्रिय बेडुली ए ॥२॥ किसउ सुपुनपुरिषु जोइउ ए नयणुलां सफल करउ । निवछणा नेत्रि करेसु ऊतारिसू ए कपूरि ऊधारणा ए। बेडीय वेडीय जोडि बलियऊ ए कीघउंबंधियारो ॥३॥ लेउ देवालउमाहि बइठउ ए संघपति संघसहिउ । लहरि लागई आगासि प्रवहणु ए जाइ विमान जिम । बलवटनाटकु जोह नवरंग ए रास लउडारस ए ॥४॥ निरुपम होइ प्रवेसु दीसई ए रुवडला धवलहर । विहां अच्छा कुमरविहारु रुअडऊ ए रुअडुला जिणभुवख । तीर्थकर तीह वंदेवि वंदिऊ ए सयंभू आदिजिणु । दीठउ वेसिवच्छराजमंदिरु ए मेदनीउरि धरिउ । अपूरवु पेषिउ संघु उत्तारिऊ ए पहली तडि समुदला ए ॥ ५ ॥ द्वादशी भाषा मबाहरवरतीरथिहि पणमिउ पासजिणिंदो। पूज प्रभावन तहिं करहिं । अजिउ ए अजिउ ए अजिउ सफल सुछंदो ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294