Book Title: Samarsinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 272
________________ समरारास । उवएससि वेसटह कुलि सपुरिसतणउ अवतारु त । वयरागरि कउतिगु किसउ ए नहीं य ज रतनह पारु त ॥८॥ पुनपुरुषु ऊपन्नु तहिं सलषणु गुणिहि गंभीरु त । बसाणंदणु नंदणु तसो आजडु जिणधमधीरु त ॥४॥ गोत्रउदयकरु अवयरिउ ए तसु पुत्रु गोसलुसाहु त । तसु गहिणि गुणमत भली य आराहइ नियनाडु त ॥ १० ॥ संघपति आसधरु देसलु लूणउ तिणि जन्म्या संसारि त । रतनसिरि भोली लाच्छि भणउं तीहतणी य घरनारित ॥११॥ देसलघरि लच्छी य निसुखि भोली भोलिमसार त । दानि सीलि लूणाधरण लाछि भली सुविचार त ॥ १२ ॥ द्वितीयभाषा रतनकुषि कुलि निम्मली य भोलीपुत्तु जाया। सहजउ साहणु समरसीहु बहुपुनिहि आया ॥१॥ लहनलगइ सुविचारचतुर सुविवेक सुजाण । रत्नपरीचा रंजवह राय अनु राण ॥२॥ तउ देसल नियकुलपईव ए पुत्र सघन । रूपवंत अनु सीलवंत परिणाविय कन ॥३॥ गोसलसुति आवासु कियउ अणहिलपुरनयरे । पुन लहइ जिम रयणमाहि नर समुद्रह लहरे ॥ ४ ।। चउरासी जिसि चउहटा वरवसहि विहार । मढ मंदिर उत्चंग चंग अनु पोलि पगार ॥ ५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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