Book Title: Samarsinh
Author(s): Gyansundar
Publisher: Jain Aetihasik Gyanbhandar

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Page 281
________________ २४५ समरसिंह । भोलीयनंदणु भलइ महोत्सवि आविउ समरु आवासि गनि । तेरइकहत्तरइ तीरथउद्धारु यउ नंदउ जाव रविससि गयणि ॥९॥ नवमी भाषा संघवाललु करी चीरि भले मान्हंतडे पूजिय दरिसण पाय । सुणि सुंदरे पूजिय दरिसण पाय । सोरठदेस संधु संचरिउ मा० चउंडे रयणि विहाइ ।। १ ॥ आदिभक्तु अमरेलीयह मान्हं० प्राविउ देसलजाउ । अलवेसरु अल जवि मिलए मान्हं० मंडलिकु सोरठराउ ॥२॥ ठामि ठामि उच्छव दुइ मान्हं गढि जूनइ संपत्तु । महिपालदेउ राउजु आवए मान्हं० सामुहउ संघमणुरतु ॥३॥ महिषु समरु बिउ मिलिय सोहई मान्हं ० इंदु किरि अनइ गोविंदु तेजि अगंजिउ तेजलपुरे मा० पूरिउ संघमाणंदु । सुणि ॥४॥ वउणथलीचेत्रप्रवाडि करे मान्हं० तलहटी य गढमाहि । ऊजिलऊपरि चालिया ए माल्हं० चविहसंघहमाहि । सुणि । दामोदरु हरि पंचमउ मान्हं० कालमेघो क्षेत्रपालु । सुणि । सुवनरेहा नदी तहिं बहए माल्हं० तरुवरतणउं झमालु ॥ ५ ॥ पाज चडंता धामियह मा० ऋमि ऋमि सुकृत विलसति । सुणि। ऊची य चडियए. गिरिकडणि मा० नीची य गति षोडंति ॥६॥ पामिउ जादवरायभवणु मा० विनि प्रदचिण देइ । सिवदेविमुतु भेटिउ करिउ मा० ऊतरिया मढमाहि । सुणि।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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