Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 6 Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय श्रमण संस्कृति के सारस्वत साधक प्रोफेसर सागरमल जैन की साहित्यसाधना सर्वविदित है। आपने विपुल जैन-साहित्य का सृजन किया है तथा शोध के नये आयाम उद्घाटित किये हैं। आप द्वारा लिखित सभी शोध-निबन्धों को एक स्थान पर देना सम्भव नहीं था इसलिए पार्श्वनाथ विद्यापीठ की प्रबन्ध-समिति ने आपके शोध-निबन्धों को 'सागर-जैनविद्या-भारती' की श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। इस श्रृंखला में अब तक पाँच पुष्प प्रकाशित हो चुके हैं। सागर-जैनविद्या भारती का षष्ठ पुष्प पाठकों के समक्ष रखते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। इस अंक में प्रो० जैन द्वारा जैन धर्मदर्शन के विविध आयामों यथा- जैन दर्शन, साहित्य, आचार, इतिहास, संस्कृति, कला आदि पर लिखे गये महत्त्वपूर्ण निबन्धों को स्थान दिया गया है, जिन्हें पढ़कर जैनविद्या का कोई भी अध्येता उनके ज्ञान-गाम्भीर्य, उनकी समालोचक दृष्टि तथा लेखनकला की उत्कृष्ट शैली से सहज ही परिचित हो जाता है। उनके शोध-निबन्धों के संकलनरूप इस पुस्तक को प्रकाशित करते हुए हम गर्व का अनुभव कर रहे हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन में संस्थान के सह-निदेशक डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय एवं प्रकाशन अधिकारी डॉ. विजय कुमार का अपेक्षित एवं अपूर्व सहयोग मिला है, एतदर्थ हम इन अधिकारीद्वय के अत्यन्त आभारी हैं। आशा है यह पुस्तक जैनविद्या के अध्येताओं एवं शोधार्थियों के लिए उपादेय सिद्ध होगी। अन्त में अक्षर सज्जा हेतु ‘एड विजन' एवं सुन्दर तथा सत्वर मुद्रण के लिए 'वर्धमान मुद्रणालय', वाराणसी के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। इन्द्रभूति बरड़ संयुक्तत सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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