Book Title: Sadhu Sadhvi Aradhana tatha Antkriya Vidhi
Author(s): Buddhimuni, 
Publisher: Jain Shwetambar Shravikashram Jaipur

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Page 9
________________ साधुसाध्वी का पर्यत यह तीन वार उच्चरें। | इन दो प्रकारके अणसणों में से कोई भी अणसण यदि न उच्चरें तो आगे लिखी गाथा को तीन वार उच्चरें- आराधना विधि | "जइ मे हुज्ज पमाओ, इमस्स देहस्स इमाइवेलाए । आहारमुवहिदेहं, सव्वं तिविहेण वोसिरिअं ॥१॥" बाद शांतिके वास्ते चतुर्विधसंघ “नित्थार पारग्ग होह" ऐसे बोलते हुए बीमारके सामने अक्षत डालें, और उत्तराध्ययन, ऋषिभाषितादि सूत्र तथा मरण समाधि, आउरपञ्चक्खाण, महापच्चक्खाण, संथारग, चंद्राविर्ध्वज, भक्तपरिज्ञा, चउसरण आदि पयन्ने तथा पद्मावती की ढील, पुण्य प्रकाशका स्तवन आदि निरंतर सुनाते रहना, जिससे बीमारकी मनोवृत्ति शुभ ध्यानमें लगी रहे । ॥महापारिहावणिया-विधिः॥ महा-पारि ट्ठावणिया ___ आयुः पूर्ण हो जाने के बाद गुरु या सबसे बड़ा साधु हाथमें वासक्षेप लेकर “कोटिकगण, वयरिसाखा, चंद्र SI * जब आयुः की आशा बिल्कुल न रहे तब दोनों में से किसी भी अणसण का पञ्चक्खाण करना चाहिये, परन्तु आजकल ऐसा विशेष । ज्ञान नहीं है जिससे यह गाथा ही उच्चारना ठीक है। विधि ॥ ७॥ ॥७॥ For Personal Pre Use Only

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