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अंतिम देववंदन
विधि
साधुसाध्वी काउस्सग्गं करूं, इच्छं शांति देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहकर एक नवकार का काउ-1
हस्सग्ग करें, बडा साधु पारकर नमोऽर्हत् कहकर आगे लिखी हुई थुई कहे। ___"शांतिः शांतिकरः श्रीमान् , शांतिं दिशतु मे गुरुः। शांतिरेव सदा तेषां, येषां शांतिरहे गृहे ॥१॥"
इसी तरह सुय-देवी, भुवन-देवी और क्षेत्र देवी का भी १-१ नवकार का काउस्सग्ग करके, पारकर नमोऽर्हत्० कहकर उन्हों की थुइयाँ कहें, और खामा० देकर "अविधि आशातना हुई होय ते सवि हुं मन-वचन
कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं" कहें। al उपाश्रयमें ही यदि देववंदन करें तो अवला और सवला काजा निकालें परन्तु यदि मंदिरमें देववंदन ।
करें तो अवला-सवला काजा न निकालें किंतु केवल कपडे अवले पहर कर जीमणे कंधे ऊपर कंबली रखें, डाजीमणी काखमें ओघा रखें, सबसे छोटे साधको आगे करके बडे बडे साध एक दूसरे के पीछे रहते हुए।
सबसे बड़ा साधु सबके पीछे रहे और सब जणे जीमणे हाथमें अवला (उल्टा) दंडा पकडकर मंदिरमें जावें। मंदिर और उपासरे के बीचमें यदि सौ(१००) हाथसे अधिक अंतर हो तो इरियावही पडिक्कमे, अन्यथा नहीं. बाद
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॥११॥
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