Book Title: Sadhu Sadhvi Aradhana tatha Antkriya Vidhi
Author(s): Buddhimuni, 
Publisher: Jain Shwetambar Shravikashram Jaipur

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Page 17
________________ साधुसाध्वी ॥ १५॥ विधि और अभिजित इनमें से यदि कोई नक्षत्र होवे तो पूतला नहीं करना । पूतले को साधु का वेष पहराना, अंतिम उसके जीमणे हाथ में चरवली तथा मुंहपत्ति बांधना, एक लड्डु सहित फूटा पात्रा झोली में रखकर वह || झोली पूतले के डाबे हाथ में बांध देना यदि दो पूतले होवें तो दोनों पूतलों के इसी तरह करके वे पूतले २ मृतक के डाबी भुजा में बांध देना । और मृतक को भी सीढी या बैकुंठी के साथ डोरी से बांध देना, जो कांधिये । बने वे भी शरीर में थोडी सी छानों की राख लगाकर कुवारी लडकी के काते हुए सूतके तीन तंतू का डावी काख के नीचे से और जीवणे खंधे के ऊपरसे 'अवला उत्तरासण' कर लेवें, उपाश्रय में से निकालते हुए मृतक के पग आगे रखने और मस्तक पीछे रखना, शोक युक्त चित्तसे वाजित्रादि महोत्सव सहित शमशान भूमिमें ले जा कर हरी-घास तथा उद्देही-कीडी नगरे आदि रहित निरवद्य जमीन ऊपर उल्टा 'क्रौं' अक्षर लिखकर उसपर चिता रच कर चंदनादि लकड़ियों से अग्नि संस्कार करावें, अंतमें अग्नि बुझा कर योग्य स्थान पर राख परठना, पीछे स्नानादि कर शुद्ध होकर गुरु के पासमें आकर छोटी या बडी शांति सुनकर संसार की अनित्यता का उपदेश सुनें, बाद सब लोग गुरु को वंदना करके अपने अपने स्थान पर जावें, इति शम् । AIEXERAEXXXXXXXX EXEXNXXX Jain Education For Personal B. Preusit Only I nnebord

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