Book Title: Sadhu Sadhvi Aradhana tatha Antkriya Vidhi
Author(s): Buddhimuni, 
Publisher: Jain Shwetambar Shravikashram Jaipur

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Page 16
________________ साधुसाध्वी ॥१४॥ शमशान भूमिमें लेजाने के वास्ते बैकुंठी अथवा सीढी तैयार हो जाये तब मृतक के हजामत करा कर स्नान करावें और शरीर पर केशर-चंदन-कपूर-बरास आदिका विलेपन करावें, नवीन अखंड चोलपट्टा पहराकर कमर में डोरी से बांध देवे और चद्दर ओढा कर बैकुंठी अथवा सीढी में रखें, उसमें मृतक के जीमणी . तरफ तो छोटा ओघा (चरवली) तथा मुंहपत्ति रक्खें, और एक लड्डु सहित फूटा पात्रा झोली में रख कर है। वह झोली मृतक के डाबी तरफ रखें । जीव निकलने के समय रोहिणी, विशाखा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, ६|| उत्तराषाढा तथा उत्तरा भाद्रपद इनमें से यदि कोई नक्षत्र होवे तो डाभ के दो पूतले करने चाहिये, यदि न करें | तो अन्य दो जणों का मरण होवे । आश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्प, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वा भाद्रपद तथा रेवती इनमें से यदि कोई नक्षत्र होवे तो एक पूतला करना चाहिये यदि न करें तो अन्य एक का मरण होवे. शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेखा, स्वाति, ज्येष्ठा है, ॥१४॥ जावें, उपद्रव शांत हो जावेगा. यदि ऐसा कारण संभव हो तो उस रात्रि में मात्रा न परड कर रख लेना चाहिये अथवा मृतक के हाथ पैर के अंगूठे अंगुली के थोडासा चीरा लगा देवें जिससे उसका अंग खंडित हो जावे तो भूतादि का प्रवेश नहीं हो सकेगा। Jain Education International For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org

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