Book Title: Sadhu Sadhvi Aradhana tatha Antkriya Vidhi
Author(s): Buddhimuni, 
Publisher: Jain Shwetambar Shravikashram Jaipur
Catalog link: https://jainqq.org/explore/600212/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्री पंचपरमेष्ठिभ्यो नमः॥ जैनार्या श्रीमती पुण्य प्राजा स्मारक ग्रंथमाला पुष्प नं० ४.. साधु-साध्वी आराधना विधि तथा अंत क्रिया विधि. पन्यासजी श्रीमान्-केशर मुनिजी के शिष्य मुनि श्री बुद्धि मुनिजी संग्रहीत विधि संग्रह से उद्धृत प्रकाशक:जैन श्वेतांबर श्राविकाश्रम, जयपुर. द्रव्य सहायकः श्रीयुत् भैरूंदानजी हाकिमकोठारी-बीकानेर. 1 प्रथमावृत्ति ५०० प्रति. विक्रम संवत् १९९०. अमूल्य भेट.5 बाहनकालन्यात Jain Education international For Personal Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ E-KE-KE-KE-KE-KE-KE-KE-KE-KE-KE-KESEXXX8X8X8XXXSXEXA . श्री हिन्दी जैनागम प्रकाशक सुमति कार्यालय द्वारा, श्री जैन प्रिन्टिंग प्रेस, कोटा में मुद्रित. O-KO-KE-KE-KE-KE-KEBARD-KE-KE-KEKONDEXXXXXXXXXX For Personal Pre Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥ साधु-साध्वी पर्यंत आराधना विधिः ॥ बीमार साधु-साध्वी को या 'योगशास्त्र' के पंचम प्रकाशमें बतलाये हुए काल-ज्ञानके बाह्य-अभ्यंतर लक्षणों से अपना मरण नजदीक मालूम हो उनको अंतिम आराधना करनी चाहिये. उसकी विधि बतलाते ह:-शुभ दिन मुहूर्त देखकर पहले पूजन किये हुए जिनविंबके दर्शन करावें, बादमें बीमार तथा चतुर्विध संघ सहित गुरु इरियावहि पडिक्कमें, फिर खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग०! चैत्यवंदन करूं ?' 'इच्छं' कहकर चैत्यवंदन करके चार थुइसे देववंदन कर, आगे लिखे मुजब ६ काउस्सग्ग करें और पार कर नमोऽर्हत्० कहकर ६ थुइयां कहें XNXNXNXNXIERRRRRRRRRRY in E IN For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी विधि १-श्रीशांतिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, वंदण वत्तिआए अन्नत्थ०कहकर एक नवकारका 5 पर्यंत काउस्सग्ग करें. गुरु काउस्सग्ग पारकर नमोऽर्हत्० कहकर थुइ कहें (अन्य सब जने थुइ सुन कर पारें). आराधना रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये । नमः श्रीशांतये तस्मै, विहितानंतशांतये ॥१॥१॥ २-श्रीशांतिदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहकर एक नवकारका काउस्सग्ग करें. श्रीशांतिजिनभक्ताय, भव्याय सुखसंपदा । श्रीशांतिदेवता देया-दशांति मपनीय मे ॥१॥२॥ ३-श्रीशासन देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहकर "चंदेसु निम्मलयरा” तक चार लोगस्सका काउस्सग्ग करें. या पाति शासनं जैन, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साऽभिप्रेत समृद्धयर्थं, भूयाच्छासन देवता ॥१॥३॥ ४-क्षेत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहकर एक नवकारका काउस्सग्ग करें. यासां क्षेत्रगताः संति, साधवः श्रावकादयः । जिनाज्ञां साधयंतस्ता, रक्षतु क्षेत्रदेवताः ॥१॥४॥ ५-भुवन देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ. कहकर एक नवकार का काउस्सग्ग करें. Jain Education de sational For Personal Private Use Only wronw.jainelibrary.org Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी चतुर्वर्णाय संघाय, देवी भुवन वासिनी। निहत्य दुरितान्येषा, करोतु सुखमक्षतम् ॥१॥५॥ पर्यत ६-शकादिसमस्त वैयावच्चगर देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहकर एक नवकारका आराधना विधि काउस्सग्ग करें. I श्रीशक्रप्रमुखाः यक्षाः, जिन शासनसंश्रिताः । देवाः देव्यस्तदन्येऽपि, संघं रक्षत्वपायतः॥ १॥६॥ बादमें बैठकर नमुत्थुणं कहकर शांति कहें, और खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० आराधना देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ० कहकर ४ लोगस्सका काउस्सग्ग करें. ___ यस्याः सान्निध्यतो भव्याः, वांछितार्थ प्रसाधकाः । श्रीमदाराधना देवी, विघ्नवातापहाऽस्तु वः ॥ १॥ ... बादमें गुरु आसन के ऊपर बैठकर वासक्षेप और अक्षतों को मंत्रे, पीछे आराधना करने वाला कहे-'उत्तम । आराहणऽत्थं वासनिक्खेवं करेह' गुरु 'करेमो' ऐसा कहकर आराधक के शिरपर वासक्षेप डालें, फिर बचपनसे | लेकर जो २ दोष लगे हों, उन्होंकी आलोयणा देकर आराधकके मुखसे नीचे लिखी गाथायें बोलावें ॥३॥ जे मे जाणंति जिणा, अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु। तेऽहं आलोएमि, उवडिओ सव्व भावेणं ॥१॥छउमत्यो । Jain Education Internation For Personal Private Use Only Mrunm.ininelibrary.org Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्यत CASAGATAKSAPAGKATAN मूढमणो, कित्तिअमित्तं च संभरइ जीवो । जं च न समरामि अहं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥२॥ जं जं मणेण । बद्धं, असुहं वायाए भासिअं जं जं । जं जं कारण कयं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥३॥ हा दुहु कयं हा दुटु, आराधना कारिअं अणुमयं पि हा दुडु। अंतो अंतो डज्झइ, हिययं पच्छाणुतावेणं ॥४॥ जं च सरीरं अत्थं, कुडुंब उवगरण विधि रूव विन्नाणं । जीवोवघाय जणयं, संजायं तं पि निंदामि ॥५॥ गहि ऊणय मुक्काइं, जम्मण मरणेसु जाइं देहाई। पावेसु पवत्ताई, वोसिरिआई मए ताई ॥६॥ | फिर आगे लिखी गाथायें बोलाते हुए चतुर्विधसंघके साथ क्षमत क्षामणे करावें साहू साहूणीओ, सावय साविओ चउव्विहो संघो। जं मणवयकाएहिं, आसाइओ तं पि खामोम ॥१॥ आयरिअ उवज्झाए, सीसे साहम्मीए कुल गणेअ । जे मे कया कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि ॥२॥ खाममि | सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ति मे सबभूएसु, वेरं ममं न केणइ ॥३॥अरिहंतो देवो गुरुणो, सुसा। हुणो जिणमय महप्पमाणं । जिण पन्नत्तं तत्तं, इय सम्मत्तं मए गहियं ॥४॥ बादमें तीन नवकार गुनाकर तीन वार करेमिभंते उच्चरावें, बाद पांच महाव्रत तथा छ? रात्रि-भोजन Jain Education international For Personal Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी विधि XEXNXXANTARA व्रत के आलावे जो कि दशवैकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन में आते हैं उन्होंमें से एक एक आलावा तीन l पर्यंत तीन वार उच्चराकर “ इच्चेयाइं पंचमहब्बयाई, राइभौअणवेरमण छट्ठाई । अत्तहियट्टियाए, उवसंपजित्ता- आराधना णं विहरामि ॥ १॥” यह गाथाभी तीनवार उच्चरावें, बाद " चत्तारि मंगलं-अरिहंता मंगलं, सिद्धामंगलं, साहूमंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मोमंगलं॥१॥ चत्तारिलोगुत्तमा-अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धालोगुत्तमा, साहूलोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मोलोगुत्तमा ॥२॥ चत्तारिसरणं पवज्जामि-अरिहंते सरणं पवजामि, सिद्धेसरणं पवज्जामि, साह सरणं पवज्जामि, केवलिपण्णत्तं धम्मंसरणं पवजामि॥३॥यहभी तीनवार कहकर चार शरणे अंगीकार करावें पापकी निंदा और पुण्यकी अनुमोदना करावें, और नीचे लिखा आलावा बोलाकर १८ पापस्थानों को वोसिरावें. | "नमो समणस्स भगवओ महइ महावीर वद्धमाण सामिस्स उत्तमऽढे ठायमाणो पञ्चक्खा (मि) इ. सव्वं पाणाइवायं १, सव्वं मुसावायं २, सव्वं अदिनादाणं ३, सव्वं मेहुणं ४, सव्वं परिग्गहं ५, सव्वं कोहं ६, माणं ७, मायं ८, लोभ, ९, पिज्जं १०, दोसं ११, कलहं १२, अब्भक्खाणं १३, अरइ-रइं १४, पेसुन्नं १५, परपरिवायं १६, मायामोसं १७, मिच्छा दंसणसल्लं १८, इच्चेइयाइं अट्ठारस पावट्ठाणाई जाव RAYARAYATRENXNXN+G ५ Jain Education For Personal Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी जीवाए तिविहं तिविहेण [ वोसिरामि ] वोसिरइ।" पर्यत । और अच्छे शकुन लेकर वजनादिकों की सम्मतिसे बीमार साधु या साध्वी वांदणे देकर नवकार आराधना विधि गिनकर अणसण उच्चरें. अणसण दो तरहके होते हैं, एकतो सागारिक और दूसरा निरागारिक, सागारिक का * पञ्चक्खाण इस मुजवहै| "भवचरिमं सागारं पञ्चक्खामि तिविहंपि आहारं, असणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणा भोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि वत्तिआगारेणं, अरिहंत सक्खिअं, सिद्ध सक्खिअं, साहु सक्खिअं, देव सक्खिअं, गुरु सक्खिअं, अप्पसक्खिअं, वोसिरामि"। यह तीन वार उच्चरें । FI निरागारिक अणसण का पञ्चक्खाण इस मुजब है "भवचरिमं निरागारं पच्चक्खामि चउव्विहंपि आहारं, सव्वं असणं, सव्वं पाणं, सव्वं खाइम, सव्वं , साइम, अन्नत्थणा भोगेणं, सहसा गारेणं, अइयं निंदामि, पडुप्पन्नं संवरेमि, अणागयं पञ्चक्खामि , अरिहंत ॥६॥ सखिअं, सिद्ध सक्खिों , साहु सक्खिअं, देव सक्खिअं, गुरु सक्खिअं, अप्प सक्खिों वोसिरामि"। SAXA XANAXARAMASASARAN *************58585858) Jain Education de sational For Personal Private Use Only wronw.jainelibrary.org Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी का पर्यत यह तीन वार उच्चरें। | इन दो प्रकारके अणसणों में से कोई भी अणसण यदि न उच्चरें तो आगे लिखी गाथा को तीन वार उच्चरें- आराधना विधि | "जइ मे हुज्ज पमाओ, इमस्स देहस्स इमाइवेलाए । आहारमुवहिदेहं, सव्वं तिविहेण वोसिरिअं ॥१॥" बाद शांतिके वास्ते चतुर्विधसंघ “नित्थार पारग्ग होह" ऐसे बोलते हुए बीमारके सामने अक्षत डालें, और उत्तराध्ययन, ऋषिभाषितादि सूत्र तथा मरण समाधि, आउरपञ्चक्खाण, महापच्चक्खाण, संथारग, चंद्राविर्ध्वज, भक्तपरिज्ञा, चउसरण आदि पयन्ने तथा पद्मावती की ढील, पुण्य प्रकाशका स्तवन आदि निरंतर सुनाते रहना, जिससे बीमारकी मनोवृत्ति शुभ ध्यानमें लगी रहे । ॥महापारिहावणिया-विधिः॥ महा-पारि ट्ठावणिया ___ आयुः पूर्ण हो जाने के बाद गुरु या सबसे बड़ा साधु हाथमें वासक्षेप लेकर “कोटिकगण, वयरिसाखा, चंद्र SI * जब आयुः की आशा बिल्कुल न रहे तब दोनों में से किसी भी अणसण का पञ्चक्खाण करना चाहिये, परन्तु आजकल ऐसा विशेष । ज्ञान नहीं है जिससे यह गाथा ही उच्चारना ठीक है। विधि ॥ ७॥ ॥७॥ For Personal Pre Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी 116 11 अतीत उपाध्याय श्री " ", तत्समुदायवर्त्ति अमुकमुनि शिष्य अमुक मुनिदेहं तिविहं तिविहेण वोसिरियं” ऐसा | कहकर मृतकके शिरपर वासक्षेप डाले, ( उसके बाद श्रावकों के करने योग्य कार्य श्रावक लोग कर लेवें और अग्नि संस्कार करने के वास्ते लेजायें. ) पीछे काल प्राप्त हुए साधु के जूने पात्रे - काचली कपडे आदि उपकरण | परठ कर श्रावकों के पाससे उपाश्रय में भूमिशुद्धि करावें, गौमूत्रादि छिडकावें, बाद सब साधु अचित्त अबोट जल से हाथ-पग धोवें, और एक साधु स्थापनाजी के सामने इरियावही पडिक्कम करके, जयउ सामिय चैत्य - वंदन कह कर, जं किंचि० नमुत्थुणं० जावंति चेइयाइं० जावंत केविसाहू ० नमोऽर्हत्० उवसग्गहरं तथा जयवीयराय • कहे. और खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० महापारिट्ठावणिया वोसिरणऽत्थं काउसग्ग करूं ? कुल, बृहत् खरतर विरुद, अतीत आचार्य श्री अतीता प्रवर्त्तिनी * 'अतीत' कहनेसे अपने २ समुदायके जो आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्त्तिनी कालप्राप्त होगये हों उन्हों के नाम कहने, परन्तु | विद्यमान हों उनके नहीं। तथा साधु कालकरे तब आचार्य व उपाध्याय इन दोनोंके ही नाम कहने और साध्वी कालकरे तब आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्त्तिनी इन तीनोंके नाम कहने चाहियें । For Personal & Private Use Only महा-पारि ठ्ठावणिया विधि 11211 www.jninelibrary.org Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥९॥ साधुसाध्वी इच्छं महापारिट्ठावणिया वोसिरणऽत्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहकर चार लोगस्स अथवा १ नवकार का || अंतिम काउसग्ग करे, पीछे पारकर प्रकट लोगस्स अथवा १ नवकार कहकर “तिविहं तिविहेण वोसिरियं” ऐसा कहे। देववंदन विधि ॥अंतिम-देव-वंदन विधिः॥ सब साधु पहरनेके सब कपडे उल्टे पहरें, यानी-डाबाछेडा ऊपर रखकर चोलपट्टा पहरें, डाबी कक्षा II (कांख-बगल) में लेकर जीमणे कंधे ऊपर पांगरणी-चद्दर ओढ कर कंबल रखें, बाद जो काल करगया हो । उसका शिष्य अथवा अन्य कोई सबसे छोटा साधु उपासरे में अवला काजा (दरवाजे तरफसे स्थापनाजी तरफ) निकाल कर एकांत में परठकर इरियावही पडिक्कमे और स्थापनाजी के सामने सबसे छोटे साधु को आगे करके जो सबसे बड़ा हो वह सबके पीछे रहे, इस तरह सब खडे रहकर आगे लिखे मुजब १ थुई से अवले | देववंदन करें। का पहले “ यदंधि नमना देव" यह महावीरस्वामी की थुई कहकर नमोऽहत्० कहें, बाद " नमो अरिहंता णं" कहकर १ नवकार का काउसग्ग करें, 'नमो अरिहंता णं' कहे बिनाही पारकर अन्नत्थ० अरिहंतचेइ ******************--***** ॐॐॐॐॐॐॐॐॐSAX For Personal Private Use Only wronw.jainelibrary.org Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी ॥१०॥ XXXXXXXXXXXX याणं० कहें. बाद बैठकर डाबा गोडा ऊंचा करके जय वीयरायः उवसग्गहरं० लघु-अजिसंता० (उल्लासिकम || अंतिम स्तोत्र) अथवा बडा अजिसंता कहकर नमोऽर्हत्०-जावंत केविसाहू० जावंति चेइयाइं० नमुत्थुणं० जंकिंचि० देववंदन विधि और खमा० देकर इच्छा० संदि० भग० चैत्यवंदन करूं ! इच्छं कहकर जयउ सामिय चैत्यवंदन कहकर || खडे होकर लोगस्स कहकर "नमो अरिहंता णं" कहें, बाद एक लोगस्स का काउस्सग्ग करें, "नमो अरिहंता गं" कहे बिनाही पारकर अन्नत्थ० तस्स उत्तरि०और इरियावही कहें, बाद खमा० देकर "अविधि आशातना हुई || होय ते सवि हुँ मन-वचन-कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं" कहें। उसके बाद हमेशा की तरह सवले कपडे पहर कर सवला काजा निकालें तथा जो सबसे बडा हो वह आगे 51 बैठे और जो छोटे हों वे अनुक्रमसे एक दूसरेके पीछे बैठें, और भगवान् की प्रतिमा पधराकर चतुर्विध संघ सहित है। आठ थुई-पांच शक्रस्तवसे सवले देववंदन करें, स्तवनके स्थान पर अजिसंता कहें और खमा० देकर 'खुद्दोवद्दव है। ओहडावणऽथं' काउस्सग्गं करूं. इच्छं अन्नत्थ० कहकर "सागरवर गंभीरा" तक चार लोगस्स का काउस्सग्ग है सब करें, पारकर प्रगट लोगस्स कहें । फिर खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० शांति देवता आराधनार्थ । For Personal Private Use Only wronw.jainelibrary.org Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतिम देववंदन विधि साधुसाध्वी काउस्सग्गं करूं, इच्छं शांति देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहकर एक नवकार का काउ-1 हस्सग्ग करें, बडा साधु पारकर नमोऽर्हत् कहकर आगे लिखी हुई थुई कहे। ___"शांतिः शांतिकरः श्रीमान् , शांतिं दिशतु मे गुरुः। शांतिरेव सदा तेषां, येषां शांतिरहे गृहे ॥१॥" इसी तरह सुय-देवी, भुवन-देवी और क्षेत्र देवी का भी १-१ नवकार का काउस्सग्ग करके, पारकर नमोऽर्हत्० कहकर उन्हों की थुइयाँ कहें, और खामा० देकर "अविधि आशातना हुई होय ते सवि हुं मन-वचन कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं" कहें। al उपाश्रयमें ही यदि देववंदन करें तो अवला और सवला काजा निकालें परन्तु यदि मंदिरमें देववंदन । करें तो अवला-सवला काजा न निकालें किंतु केवल कपडे अवले पहर कर जीमणे कंधे ऊपर कंबली रखें, डाजीमणी काखमें ओघा रखें, सबसे छोटे साधको आगे करके बडे बडे साध एक दूसरे के पीछे रहते हुए। सबसे बड़ा साधु सबके पीछे रहे और सब जणे जीमणे हाथमें अवला (उल्टा) दंडा पकडकर मंदिरमें जावें। मंदिर और उपासरे के बीचमें यदि सौ(१००) हाथसे अधिक अंतर हो तो इरियावही पडिक्कमे, अन्यथा नहीं. बाद #NAXER**************** ॥११॥ Jain Education For Personal Private Use Only Ca n inelibrary.org Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी ऊपर लिखे मुजब एक थुई से अवले देववंदन करें, फिर सवले कपडे पहर कर आठ थुई-पांच शक्रस्तवसे । अंतिम ॥१२॥ सवले देववदंन करें, परन्तु सवले देववंदन करते समय सबसे बडा साधु आगे रहे और छोटे छोटे सब एक || देववंदन विधि दूसरे के पिछे रहें। अन्य गांव से एक-समाचारी वाले छोटे या बडे किसी साधु के काल करने के समाचार आवे तो अवला काजान निकालें और अवले देववंदन भी नहीं करें किन्तु सवला काजा निकाल कर आठ थर्ड पांच शक्रस्तव से सवले देववंदन करें और छोटी या बडी साध्वी के काल करने के समाचार आवे अथवा उसी गांव में है, साध्वी काल करे तो केवल साध्वियाँ तथा श्राविकादि ऊपर लिखे मुजब देववंदन करें। ॥श्रावक-कर्त्तव्य ॥ जब मृतक के सिरपर वास-क्षेप डालकर साधु वोसिरा देवें तब श्रावक लोग मृतक के मुख में सोना, ॥१२॥ * चांदी, तांबा, प्रवाला (मुंगिया) तथा मोती ये पंचरत्न डाल कर दोनों होठ भेले करके मुखपर मुंहपत्ति NAGAR lain For Personal Private Use Only bay Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधि साधसाध्या बांधदेवें, दोनों नेत्र मिचा देवें, और जहां रखना हो वहां जमीन में लोह का कीला ठोक कर यदि बैठाना || अंतिम क्रिया हो तो किसी थंभे आदि के सहारे पाट के उपर बैठा कर मृतक को थंभे आदि के साथ डोरी से बांध देवे, और यदि सुलाना हो तो पाटिये उपर सुला कर दोनों पगों के तथा दोनों हाथों के अंगूठे डोरीसे शामिल बांध देवें. जहांपर जीव निकला हो वहां भी जमीन में लोहका कीला ठोक देना। यदि रात्रिमें काल करे तो सवेरे । होवे वहां तक मृतक के पास जागते हुए सावधान पणे से बैठे रहना चाहिये, उस समय जो नवीन दीक्षित हो, कायर-डरपोक हो, अगीतार्थ हो उनको पास में न रखने चाहिये परन्तु निर्भय हो, गीतार्थ हो, निद्रा | को जीतने वाले हों हर तरह उपाय करने में होशियार हो तथा प्रमाद रहित हो ऐसे साधु और श्रावक मृतक के आस पास बैठे रहें । RECASTECARRY ॥१३॥ | *-यदि मृतक को सुला दिया हो और नशों के खिचाव से मृतक के उठने का संभव हो तो उसकी छाती पर पत्थर की शिला रख नादेना चाहिये और यदि कदाचित् भूतादि के प्रवेश से मृतक उठने लगे या अट्टहास करने लगे तो किसी प्रकार का डर न लाते हुए धैर्य से डावे हाथ में मात्रा लेकर "मा उडे बुज्झ बुज्झ गुजुगामा मुज्झह" ऐसे बोलते हुए मृतक के ऊपर मात्रा छांटे जिससे भूतादि भग JainEdition For Personal. Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी ॥१४॥ शमशान भूमिमें लेजाने के वास्ते बैकुंठी अथवा सीढी तैयार हो जाये तब मृतक के हजामत करा कर स्नान करावें और शरीर पर केशर-चंदन-कपूर-बरास आदिका विलेपन करावें, नवीन अखंड चोलपट्टा पहराकर कमर में डोरी से बांध देवे और चद्दर ओढा कर बैकुंठी अथवा सीढी में रखें, उसमें मृतक के जीमणी . तरफ तो छोटा ओघा (चरवली) तथा मुंहपत्ति रक्खें, और एक लड्डु सहित फूटा पात्रा झोली में रख कर है। वह झोली मृतक के डाबी तरफ रखें । जीव निकलने के समय रोहिणी, विशाखा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, ६|| उत्तराषाढा तथा उत्तरा भाद्रपद इनमें से यदि कोई नक्षत्र होवे तो डाभ के दो पूतले करने चाहिये, यदि न करें | तो अन्य दो जणों का मरण होवे । आश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्प, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वा भाद्रपद तथा रेवती इनमें से यदि कोई नक्षत्र होवे तो एक पूतला करना चाहिये यदि न करें तो अन्य एक का मरण होवे. शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेखा, स्वाति, ज्येष्ठा है, ॥१४॥ जावें, उपद्रव शांत हो जावेगा. यदि ऐसा कारण संभव हो तो उस रात्रि में मात्रा न परड कर रख लेना चाहिये अथवा मृतक के हाथ पैर के अंगूठे अंगुली के थोडासा चीरा लगा देवें जिससे उसका अंग खंडित हो जावे तो भूतादि का प्रवेश नहीं हो सकेगा। For Personal Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी ॥ १५॥ विधि और अभिजित इनमें से यदि कोई नक्षत्र होवे तो पूतला नहीं करना । पूतले को साधु का वेष पहराना, अंतिम उसके जीमणे हाथ में चरवली तथा मुंहपत्ति बांधना, एक लड्डु सहित फूटा पात्रा झोली में रखकर वह || झोली पूतले के डाबे हाथ में बांध देना यदि दो पूतले होवें तो दोनों पूतलों के इसी तरह करके वे पूतले २ मृतक के डाबी भुजा में बांध देना । और मृतक को भी सीढी या बैकुंठी के साथ डोरी से बांध देना, जो कांधिये । बने वे भी शरीर में थोडी सी छानों की राख लगाकर कुवारी लडकी के काते हुए सूतके तीन तंतू का डावी काख के नीचे से और जीवणे खंधे के ऊपरसे 'अवला उत्तरासण' कर लेवें, उपाश्रय में से निकालते हुए मृतक के पग आगे रखने और मस्तक पीछे रखना, शोक युक्त चित्तसे वाजित्रादि महोत्सव सहित शमशान भूमिमें ले जा कर हरी-घास तथा उद्देही-कीडी नगरे आदि रहित निरवद्य जमीन ऊपर उल्टा 'क्रौं' अक्षर लिखकर उसपर चिता रच कर चंदनादि लकड़ियों से अग्नि संस्कार करावें, अंतमें अग्नि बुझा कर योग्य स्थान पर राख परठना, पीछे स्नानादि कर शुद्ध होकर गुरु के पासमें आकर छोटी या बडी शांति सुनकर संसार की अनित्यता का उपदेश सुनें, बाद सब लोग गुरु को वंदना करके अपने अपने स्थान पर जावें, इति शम् । AIEXERAEXXXXXXXX EXEXNXXX Jain Education For Personal B. Preusit Only I nnebord Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसाध्वी HARE EASEENA CIENTS अंतिम क्रिया DUOSATORS TODAY SH विधि *********** CHUTER // इति साधु-साध्वी आराधना व अंतिम क्रिया विधि सम्पूर्ण // EXNAXARASRARAM NROERAL Jल LADLIN030. PLETENT RESERIES G Jain Education UICA For Personal BP Use Only