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________________ साधुसाध्वी चतुर्वर्णाय संघाय, देवी भुवन वासिनी। निहत्य दुरितान्येषा, करोतु सुखमक्षतम् ॥१॥५॥ पर्यत ६-शकादिसमस्त वैयावच्चगर देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहकर एक नवकारका आराधना विधि काउस्सग्ग करें. I श्रीशक्रप्रमुखाः यक्षाः, जिन शासनसंश्रिताः । देवाः देव्यस्तदन्येऽपि, संघं रक्षत्वपायतः॥ १॥६॥ बादमें बैठकर नमुत्थुणं कहकर शांति कहें, और खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० आराधना देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ० कहकर ४ लोगस्सका काउस्सग्ग करें. ___ यस्याः सान्निध्यतो भव्याः, वांछितार्थ प्रसाधकाः । श्रीमदाराधना देवी, विघ्नवातापहाऽस्तु वः ॥ १॥ ... बादमें गुरु आसन के ऊपर बैठकर वासक्षेप और अक्षतों को मंत्रे, पीछे आराधना करने वाला कहे-'उत्तम । आराहणऽत्थं वासनिक्खेवं करेह' गुरु 'करेमो' ऐसा कहकर आराधक के शिरपर वासक्षेप डालें, फिर बचपनसे | लेकर जो २ दोष लगे हों, उन्होंकी आलोयणा देकर आराधकके मुखसे नीचे लिखी गाथायें बोलावें ॥३॥ जे मे जाणंति जिणा, अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु। तेऽहं आलोएमि, उवडिओ सव्व भावेणं ॥१॥छउमत्यो । Jain Education Internation For Personal Private Use Only Mrunm.ininelibrary.org
SR No.600212
Book TitleSadhu Sadhvi Aradhana tatha Antkriya Vidhi
Original Sutra AuthorBuddhimuni
Author
PublisherJain Shwetambar Shravikashram Jaipur
Publication Year1934
Total Pages18
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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