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साधुसाध्वी
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अतीत उपाध्याय श्री
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", तत्समुदायवर्त्ति अमुकमुनि शिष्य अमुक मुनिदेहं तिविहं तिविहेण वोसिरियं” ऐसा | कहकर मृतकके शिरपर वासक्षेप डाले, ( उसके बाद श्रावकों के करने योग्य कार्य श्रावक लोग कर लेवें और अग्नि संस्कार करने के वास्ते लेजायें. ) पीछे काल प्राप्त हुए साधु के जूने पात्रे - काचली कपडे आदि उपकरण | परठ कर श्रावकों के पाससे उपाश्रय में भूमिशुद्धि करावें, गौमूत्रादि छिडकावें, बाद सब साधु अचित्त अबोट जल से हाथ-पग धोवें, और एक साधु स्थापनाजी के सामने इरियावही पडिक्कम करके, जयउ सामिय चैत्य - वंदन कह कर, जं किंचि० नमुत्थुणं० जावंति चेइयाइं० जावंत केविसाहू ० नमोऽर्हत्० उवसग्गहरं तथा जयवीयराय • कहे. और खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० महापारिट्ठावणिया वोसिरणऽत्थं काउसग्ग करूं ?
कुल, बृहत् खरतर विरुद, अतीत आचार्य श्री अतीता प्रवर्त्तिनी
* 'अतीत' कहनेसे अपने २ समुदायके जो आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्त्तिनी कालप्राप्त होगये हों उन्हों के नाम कहने, परन्तु | विद्यमान हों उनके नहीं। तथा साधु कालकरे तब आचार्य व उपाध्याय इन दोनोंके ही नाम कहने और साध्वी कालकरे तब आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्त्तिनी इन तीनोंके नाम कहने चाहियें ।
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महा-पारि ठ्ठावणिया
विधि
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