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साधुसाध्वी ॥१०॥
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याणं० कहें. बाद बैठकर डाबा गोडा ऊंचा करके जय वीयरायः उवसग्गहरं० लघु-अजिसंता० (उल्लासिकम || अंतिम स्तोत्र) अथवा बडा अजिसंता कहकर नमोऽर्हत्०-जावंत केविसाहू० जावंति चेइयाइं० नमुत्थुणं० जंकिंचि०
देववंदन
विधि और खमा० देकर इच्छा० संदि० भग० चैत्यवंदन करूं ! इच्छं कहकर जयउ सामिय चैत्यवंदन कहकर || खडे होकर लोगस्स कहकर "नमो अरिहंता णं" कहें, बाद एक लोगस्स का काउस्सग्ग करें, "नमो अरिहंता गं" कहे बिनाही पारकर अन्नत्थ० तस्स उत्तरि०और इरियावही कहें, बाद खमा० देकर "अविधि आशातना हुई || होय ते सवि हुँ मन-वचन-कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं" कहें।
उसके बाद हमेशा की तरह सवले कपडे पहर कर सवला काजा निकालें तथा जो सबसे बडा हो वह आगे 51 बैठे और जो छोटे हों वे अनुक्रमसे एक दूसरेके पीछे बैठें, और भगवान् की प्रतिमा पधराकर चतुर्विध संघ सहित है। आठ थुई-पांच शक्रस्तवसे सवले देववंदन करें, स्तवनके स्थान पर अजिसंता कहें और खमा० देकर 'खुद्दोवद्दव है। ओहडावणऽथं' काउस्सग्गं करूं. इच्छं अन्नत्थ० कहकर "सागरवर गंभीरा" तक चार लोगस्स का काउस्सग्ग है सब करें, पारकर प्रगट लोगस्स कहें । फिर खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० शांति देवता आराधनार्थ ।
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