Book Title: Rushidatta Charitra Sangraha Author(s): Chandanbalashreeji Publisher: Bhadrankar Prakashan View full book textPage 6
________________ सिरिमुणिवइगुणवालविरइअरिसिदत्ताचरिये श्रेणिकनृपकृता वीरजिनस्तुतिः "जय भवसिंधुनिमज्जमाणजंतुघणुत्तारण ! । जय ससिनिम्मलकित्तिनिलय ! जय भवियविबोहण ! ॥ जय खरकामगयंदकुंभनिस्सुंभणहरिवर ! । जय सुरकिंनर नरवरिंदसंथुय ! परमेसर ! ॥ जय विज्जुज्जल ! जय [ सा ]मिसाल ! जय मु(सु)हसुदीहर ! । जय खर-निट्टरवज्जसरिस ! कामह पंचविसर ! ॥ जय ससुरासुरसिद्धमहिउ तिहुयणजणाहिज्जइ । नो वच्छत्थलु मयणसरेहिं तुहु नाह ! भिज्जइ ॥ जय ससुरासुरकिंनर-नरवरपणमंतघट्ठपयकमल । जय मोहनिसियरनासण ! जय केवलकिरणविप्फुरिय ! ॥ नर-तिरिय-देव-नारयभवसयसंघट्टभीसणदुरंत( ते)। संसारमहाजलहिम्मि नऽत्थि सरणं तुमं मोत्तुं" ॥ [रिसिदत्ताचरिए पढमं पव्वं/४१-४६]Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 436