Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोगाणं । लालिच्च-लावण्ण-गुणोववेया पागय-भासा उवेहिया ण कि दुक्खं जरणयइ महुर-रस-सिणायगाणं कवीणं ? तं पागयं जस्स मउला पदावली पीणेइ मणं जणाणं, जस्सि सहस्स-सहस्स-वास-पज्जतं अणेगेसिं महच्चाणं महप्पाणं सत्थाणं जायं विरयणं । भगवया महावीरेण वद्धमाणेरण जस्सि उवएसा कया। महप्पणा बुद्धेण जस्सि निब्वाण-मग्गो पयासिओ। __ जत्थ अणेगंतवायस्स परिक्खा उवलब्भइ, जत्थ य उवलब्भइ मज्झिमपडिवयाए महत्थो सरो। जं पुरोकाउ' लिहियाणि विज्जते अणेगाणि कव्वनाडगादीणि ललियाणि सत्थाणि । जेण संखाइयाणि रहस्सारिण वहइ अज्जावि सा। किं तीसे सुत्तं अहुणा विलसिअं न जुत्तं ? जइवि इयाणि पागयं नत्थि लोग-भासियं । तहवि पगाममत्थि पाढजोग्गं । जह सयाणि-सयाणि सत्थाणि पुरातणाणि पढिज्जंति, तह इयाणि विरइयाणि किं न अज्झयण-विसय-गयाणि भविस्संति ? तो पाइय-भासाए गंथ-रयणं नेवत्थि विचार-विरहियं । एयम्मि पओयणे अहं अभिणंदेमि चंदणमुरिंग । ___ संपुण्णे वि साहिच्चे कथा-गंथाणं अत्थि महं गोरवमयं ठाणं । कुवलयमाला कहा, उवमिति-भवपवंचकहा-पभितयो अणेगा कहा संति सुप्पसिद्धा । तप्परंपराए एसा वि भवइ निबद्धा। कहाकारेण मुणिणा को कहाए पबंधो सुललिओ। भासा-दिट्ठीए पओग-पहाणा इमा। मुणी एसो ललियाणं अभिणवाणं य पओगाणं पगरणे अस्थि सुप्पसिद्धो। कहा-पबंधे जत्थ तत्थ पागय-वागरणं उदाहडमिव दिस्सइ। मउला पगई जह मणं हरइ, तह कहाए वि मउला पओग-पवत्ती भवइ मणोहरा । लहूणि वक्काणि सरलाणि साहूणि । निदसण-रूवेण ४० पिट्ठस्स इमा पंतीओ संति पढिअव्वा__ "अइक्कतो गब्भकालो। सुहं सुहेण पसविणी जाया भाणुमई। सव्वलक्खणसंजुत्तं उप्पण्णं पुत्तरयणं । अव्वो ! सुण्णं घरं गिहमणिणा सोहिअं । अभूअपुटवो उत्थारो वट्टिओ सयणाणमणम्मि । धण्णण For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 362