Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरिअं । 'आहारम्मि ववहारम्मि य चत्तलज्जेणं होअव्वं ।' (पृष्ठ ३२) एयं सुत्तं एयस्स सक्कय-सिलोगस्स सई जणयइ___ 'आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ।' माणसकारेण संत तुलसीदासेण अणेगेसि सक्कय-सिलोगाणं माणसे कुसलाए पद्धतीए सण्णिवेसो कओ, तेण माणसस्स कव्वदिट्ठीए महामुल्लत्तं जायं । बहूणं पुराणाणं अणुभूईणं समवतारो पज्जोययइ गंथस्स अंगमंगं । विसयं उवसंहरमाणोहं एवं साहेउ लहेमि ओगासं-कहाकारेण एवं पत्थूयं कथागंथं लिहिऊरण--'पडिसोयमेव अप्पा दायन्वो होउकामेण'-इति आगम-निद्द सो सफलीकओ। अज्ज पाइअ गंथनिम्माणं पडिसोय-गमणतो नत्थि नूणं । महामणेण गुरुवरेण कालूगणिणा जो उज्जमो कओ, गुरुवरेण महप्पणा तुलसीगणिरणा जस्स धारा पवाहिआ, तीसे गुरुतरो एस जोगो कहा-पबंधो भविस्सइ'त्ति वोत्तु सक्कं । एयमढं साधुवादमरिहइ कहाकारो मुणी । एयस्स हिंदीअणुवादो कओ मुणिरणा दुलहराजेग्ण, संस्कृत-छाया कया मुरिगणा गुलाबचंदेण। एवं उभयमवि कज्ज कयमस्थि सस्समं । अणेरण गंथस्स महिमा परिवढिया, सारल्लमवि । सक्कय-हिंदो-पाढगा अवि पढिउ सुलहत्त लद्धा। तेरापंथ-परंपराए एयारिसी गंथसंपदा निरंतरं वड्ढमाणा भवे इइ चिरमभिलसामि। वि० सं० २०२७ माघवदिह बोरावड़ (राजस्थान) -मुनि नथमल For Private And Personal Use Only

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