Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना "इस अपार काव्य-संसार में कवि प्रजापति है। विश्व के निर्माण में उसकी जैसी अभिरुचि होती है, वह उसे उसी प्रकार में बदल देता है।" कवि की इस उक्ति में यथार्थ का निरूपण हुआ है। कवि के द्वारा ही रसमय संसार का निर्माण होता है। यदि काव्यरस नहीं होता तो इस क्षणभंगुर संसार में शाश्वत रस क्या होता ? कवि सत्य को सरस बनाकर प्रस्तुत करता है । इससे वह स्वयं आनन्दित होता है और दूसरों को भी आनन्दित करता है। काव्य में तीन मूल्यवान उपकरण होते हैं--कथावस्तु, भाषा और शैली। इस में भाषा शाश्वत नहीं होती। एक समय था जब काव्य-रचना में प्राकृत भाषा की प्रधानता थी । आगम में लिखा है- "संस्कृत और प्राकृत ये दोनों भाषाएं प्रशस्त और ऋषिभाषित हैं।" आज समय बदल चुका है । संस्कृत और प्राकृत भाषाओं का समय अतिक्रान्त हो गया है । आज के विद्वान् मानते हैं कि ये मृत भाषाएं हैं । कौन अमृत पुरुष इन-मृत-भाषाओं में काव्य-रचना करने के लिए उत्साहित होगा ? यह एक आश्चर्य है कि चन्दनमुनि इन भाषाओं में काव्य-रचना करने के लिए प्रवृत्त हुए । इसका कारण क्या है ? मैं मानता हूँ कि अनेकान्तवाद के रस से प्रीणित चन्दन मुनि को अतीत-निरपेक्ष वर्तमान नहीं मिला और न वर्तमान-निरपेक्ष अतीत ही उन्हें प्राप्त हुआ। जो अतीत में वर्तमान और वर्तमान में अतीत को देखता है, वह शाश्वत मार्ग का अनुगामी होता है । जो शाश्वतमार्गगामी होता है, वह विस्मृत तथ्यों के प्रति भी लोगों की रुचि उत्पन्न कर देता है । प्राकृत भाषा ललित है और लावण्य से उपपेत है । वह प्राकृत भाषा ! जिसकी मृदु पदावली जन-मानस को आनन्दित करती है; जिसमें सहस्रों वर्ष पर्यन्त अनेक महान् शास्त्रों की रचना होती रही है; For Private And Personal Use Only

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