Book Title: Rayanwal Kaha
Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेट्ठिणा लद्धो सभाणू । दाणाइ-णीर-सित्तो फलिओ पुप्फिओ धम्मकप्परुक्खो । णिभालिऊण अब्भग-मुहचंदं परमतुट्ठा भाणमई । चिरपरिकप्पिओ दोहलो पूरिओ विहिणा । अणेगेहिं आणदिएहिं वयंसेहिं गहिअं सेट्ठित्तो पुण्णवत्तं ।” मण्णेहं सक्कय-पगइ-पहाणाओ पागयाओ भवइ अहियं लद्धपति? जण-गण-पउत्तं पागयं । किंतु पउत्तिहेउणा तं नत्थि अहुणा उवलद्धं, तहावि कहाकारेण जत्थ-तत्थ देसि-सद्दाणं पओगो कओ अत्थि । कुह-कुहचि देसिस(रेण सक्कय-समसद्द-संजोगो कण्णापियो वि जाओ। उदाहरण-रूवेण एत्थ--'तक्कुअ-जणेहि' (पृष्ठ २४) पत्थुअं भवइ । जइ एयस्स ठाणे 'सयण-जणेहि सिया, सिया बहु रमणीयं । जइ वि हरिभद्रसूरिणा एस पओगो को अत्थि। कहाकारेण पाईण-गंथाणं पओग-पद्धतिमणुस्सिय कया पओगा। तहवि अज्ज भासा-पबंध-सरणीए बहु परिवट्टणमवेक्खियमत्थि । ___ कथा-वत्थु अत्थि पाईणं । तहवि कहाकारेण अभिणवो परिवेसो पदत्तो, तेण एसा भाति नव्वा विव । एयम्मि कहा-पबंधे ठाणे-ठाणे धुव-तच्चाणं संगाणमवि अस्थि मुहरिअं । पढियव्वा एता पंतीओ___"अहो ! अलक्खिअं खु मोह-महारायस्स विडंबणं ! पुत्त-पोत्तेहि परिवारिआ वि खिज्जति विरहिआ वि । दुरहिगमा किर मोह-मइराए तणुवी अण्णाणरेहा। सुह-संकप्पिए वि दुहं, दुहाइएवि सुहं अभिडइ। वत्थुत्तो पोग्गलिअं आसत्ति-पल्हत्थं किं सुहं, किं दुहं ? इहगओ उत्थारो वि परिणइ पत्तो पच्चक्खं सोआलिद्धो । हंत ! तहवि कसाय-कलुसिओ जीवो णो जहातच्चं जिणदेसि धम्म सद्दहइ, पत्तिअइ, रोएइ य ।" (पृष्ठ १६) जहमणी मुत्ताहारं सोभाहिअं करेइ, तह अंतो बद्धाणि नीइसुत्ताणि वद्धेति गंथ-माहप्पं । कहाकारेण अणेगेसु ठाणेसु एयमा For Private And Personal Use Only

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