Book Title: Rayanwal Kaha Author(s): Chandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni, Publisher: Bhagwatprasad Ranchoddas View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्थावणा "अपारे कव्व-संसारे, कवी अस्थि पयावई। जहाभिरोयए विस्सं, तहेमं परिवट्टइ ॥" अरिंस सिलोगे जहत्थमत्थि निरूविरं। रसमयस्स भुवणस्स निम्माणं कविणा चिअ कयमस्थि । खणभंगुरे एयम्मि लोए कुह को भवे सासओ रसो जइ तत्थ न सिया कव्वरसो। कवी सच्चं रसथालीए परिपागं विणीय उवहरइ, तेरण सो मोय-मेउरो पमोए इ अवरे वि। कथावत्थु, भासा, गुफणं-एयाणि भवंति महग्याणि उवगरणाणि कव्वस्स । एएसु भासा नत्थि सासया। कयाचि पागय-भासा कव्वस्स रयणाए पमुहा आसी । जह लिहिअमथि आगम-सुत्ते ‘सक्कयं पागयं चेव पसत्थं इसि-भासिगं ।" इयाणि कालस्स परिवट्टणं जायं । सक्कयस्स पागयस्स य कालो अइक्कतो। अज्जकालीणा विचक्खणा भणंति-एया मया भासा संति । को अमओ मयासु भासासु कव्वं काउ उच्छाहमणुगच्छे ? अच्छेरगमिणं चंदणमुरिगणा एता किर भासा पाहण्णण कव्वरयणाए पउत्ता । किमथि कारणं? मण्णेहं अणेगंतवायरस-पीगिएण मुणिणा वट्टमाणं अईअणिरवेक्खं णोवलद्धं । ण य वट्टमाण-णिरवेक्खं लद्धमईअं। जो अईए वट्टमाणं पासइ, पासइ तह वट्टमाणे अईअं सो भवइ सासयमग्गगामी। सासयमग्गगामी पम्हुठेसु वि तच्चेसु पुणो सडू उप्पाएइ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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