Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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प्रास्ताविक कथन - . . २. रत्नपरीक्षा- यह ग्रंथ १३२* प्राकृत गाथाओं में है । संवत् १३७२ में दिल्ली में सम्राट् अल्लाउद्दीन के शासनमें वपुत्र हेमपाल के लिये प्रस्तुत ग्रंथ की रचना की। पूर्व कवि अगस्त्य और बुद्ध भट के ग्रंथों के अतिरिक्त शाही रत्नकोश की अनुभूति द्वारा अभिलषित विषय का सुन्दर प्रतिपादन किया है। . .. ३. वास्तुसार-शिल्प स्थापत्य के विषय में प्रस्तुत ग्रंथ प्रामाणिक माना जाता है । पं. भगवानदासजी ने हिन्दी और गुजराती अनुवाद सह जयपुर से प्रकाशित मी कर दिया है। प्रस्तुत प्रति संवत् १४०४ की लिखित है और मुद्रित संस्करण से पाठ भेद का प्राचुर्य है । इसकी रचना संवत् १३७२ विजया - दशमी को कनाणापुर में हुई।
४. ज्योतिषसार- यह ग्रंथ संवत् १३७२ में २४२ प्राकृत गाथाओं में रचित है, जिसकी श्लोक संख्या, यंत्र कुंडलिका सह ४७४ होती है । इसमें ज्योतिष जैसे वैज्ञानिक विषय को बडी कुशलता के साथ निरूपण किया है।
५. गणितसार कौमुदी- यह ग्रंथ कुल ३११ गाथाओं में है । गणित जैसे शुष्क और बुद्धि प्रधान विषय का निरूपण करते हुए ग्रन्थकार ने अपनी योग्यता का अच्छा परिचय दिया है । इस ग्रंथ के परिशीलन से तत्कालीन वस्तुओं के भाव, तौल, नाप इत्यादि सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक परिस्थिति का अच्छा ज्ञान हो
जाता है । वस्त्रों के नाम, उनके हिसाब, पत्थर, लकड़ी, सोना, चाँदी, धान्य, घृत, • तैलादि के हिसाबों के साथ साथ क्षेत्रों का माप, धान्योत्पत्ति, राजकीय कर, मुकाता इत्यादि अनेक. महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाला गया है । इसके कतिपय प्रश्न देश्य भाषा के छप्पयों में भी है, जो भाषाकीय अध्ययन की दृष्टि से भी अपना वैशिष्टय रखते हैं।
६. धातोत्पत्ति- प्राकृत की ५७ गाथाओं में पीतल, तांबा, सीसा प्रभृति धातुओं के उत्पत्ति विधानादि के साथ साथ हिंगुल, सिंदुर, दक्षिणावर्त संख, कपूर, अगर, चंदन, कस्तूरी आदि वस्तुओं का भी विवरण दिया है; जो कवि के बहुज्ञ होने का सूचक है।
७. द्रव्यपरीक्षा- प्रस्तुत ग्रंथ कवि की समस्त रचनाओं में अद्वितीय है । भारतीय साहित्य में पुराने सिक्कों के संबन्ध में खतन्त्र रचना वाला यही एक ग्रंथ उपलब्ध है
* पं. भगवानदासजी के प्रकाशित वास्तुसार (गुजराती अनुवादसहित ) के अंत में रत्नपरीक्षा (गा० २३ से १२७) छपी हैं। उसके बीच की ६१ से ११९ तक की गाथाएं : धातोत्पत्ति की हैं। पाठ-भेद भी काफी है। उक्त ग्रन्थानुसार रत्नपरीक्षा १२७ गाथाओं का होता है । पर वास्तव में उसमें बीच की बहुत सी गाथाएं छूट गई हैं।
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