Book Title: Ratnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 12
________________ रत्नपरीक्षादि ग्रन्थ संग्रह-किंचित् प्रासंगिक __'वस्तुसार' एक प्रसिद्ध रचना है। इसका मुद्रण भी पहले हो चुका है और फिर इस की अन्य प्रतियां भी उपलब्ध होती हैं । अतः उन के आधार पर यह प्रबन्ध तो प्रायः ठीक शुद्ध किया जा सका है । इस के तो विशिष्ट पाठ भेद भी दे दिये हैं। फेरू के इन ग्रन्थों में सब से अधिक महत्त्व का ग्रन्थ 'द्रव्यपरीक्षा' है । इस प्रबन्ध में, उस ने अपने समय में भारत के भिन्न भिन्न प्रदेशों और प्रान्तों में प्रचलित, सिक्कों की जो जानकारी लिखी है वह सर्वथा अपूर्व है। इस विषय पर प्रकाश डालने वाली और कोई ऐसी प्राचीन साहित्यिक कृति अभी तक ज्ञात नहीं है। इस ग्रन्थ पर तो भारत के मध्यकालीन सिक्कों के परिज्ञाता ऐसे किसी विशिष्ट विद्वान् को, एक अध्ययन पूर्ण एवं प्रमाणभूत ग्रन्थ लिखना आवश्यक है। इस का संपादन कार्य प्रारंभ करते समय हमारा उत्साह था, कि हम इस विषय में यथाशक्य जानकारी एवं साधनसामग्री प्राप्त करके, इस के साथ छोटा-बडा भी वैसा कोई निबन्ध लिखेंगे; पर समयाभाव के कारण हम वैसा निबन्ध लिखने में असमर्थ रहे । हम आशा करते हैं कि अब इस ग्रन्थ का यह मूल स्वरूप प्रकट हो जाने पर, कोई सुयोग्य निष्कविज्ञ विद्वान् वैसा प्रयत्न करने की प्रेरणा प्राप्त करेंगे। फेरू के 'रत्नपरीक्षा' ग्रन्थ के विषय में तो प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. मोती चन्दजी ने एक अच्छा परिचयात्मक निबन्ध लिख देने की कृपा की है, जो इसके साथ दिया गया है । इसके लिये हम डॉक्टर साहब के प्रति अपना आभार प्रदर्शित करते हैं । गणितसार' और 'ज्योतिषसार ' ये रचनाएं प्राथमिक अभ्यासियों के अध्ययन की दृष्टि से अच्छी उपयोगी हैं । गणितसार में तो ठक्कुर फेरू ने अपने समय में दिल्ली के आसपास के प्रदेश में व्यवहृत अनेक देश्य शब्दों और स्थानिक पदार्थों का भी उल्लेख किया है जिन पर विशेष प्रकाश डाला जा सकता है। . फेरू के इस ग्रन्थ संग्रह की जो उक्त प्राचीन प्रति उपलब्ध हुई है वह, जैसा कि उसके लिपि कर्ता ने दो तीन स्थानों पर निर्देश किया है, वि. सं. १४०३ और १४०४ वर्ष के बीच में लिखी गई है। वास्तव में यह पोथी उक्त संवत् के फाल्गुण और चेत के महिने के बीच में, डेट-दो महिने के अन्दर ही लिखी गई है । ठकुर फेरू ने 'द्रव्य परीक्षा' की रचना, संवत् १३७५ में दिल्ली में अल्लाउद्दीन बादशाह के राज्य • काल में की थी । अतः रचना समय के बाद २५-३० वर्ष के भीतर ही यह पोथी लिखी गई थी जिस से इस की प्राचीनता स्वतः सिद्ध है। इस प्रति की कुल पत्रसंख्या ६० हैं और उन में निम्न तालिका के अनुसार फेरू की इस संग्रह वाली सातों रचनाएं लिखी गई हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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