Book Title: Rakshabandhan aur Deepavali Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 7
________________ रक्षाबंधन और दीपावली भी वे महान हैं। श्रुतसागर और विष्णुकुमार तो मुनि ही थे, आचार्य नहीं थे। फिर भी हमने स्वयं अपनी लड़ाकू प्रकृति के कारण आचार्य अकंपन को महत्त्व न देकर उनके ही शिष्य मुनिराज श्रुतसागर और विष्णुकुमार को ही महत्त्व दिया। ___मैं मुनिराजों की नहीं, अपने चित्त की खराबी बता रहा हूँ कि उन तीन तरह के मुनिराजों में हमारे चित्त ने किसको सबसे ज्यादा महत्त्व दिया; हमारी दृष्टि में महिमा किस बात की अधिक है। विष्णुकुमार ने जो कुछ किया, उसके फल में उन्हें मुनिपद छोड़ना पड़ा । क्या इसका सीधा-सच्चा अर्थ यह नहीं है कि मुनिपद में ये काम करने योग्य नहीं हैं? आज के जो मुनिराज उन्हें आदर्श मानकर धर्मरक्षा के नाम पर उत्तेजना फैलाते हैं, तोड़-फोड़ करना चाहते हैं; उन्हें विष्णुकुमार के उस निर्णय पर ध्यान देना चाहिए कि उनको यदि ऐसा करने का विकल्प आया तो दिगंबर भेष बदनाम न हो और इस पद की मर्यादा कायम रहे; इसलिए उन्होंने पहले मुनिपद छोड़ा और बाद में यह काम किया। वस्तुतः बात यह है कि जब उन्होंने मुनिपद छोड़कर बावनिया का भेष बना लिया तो वे उस समय मुनिराज ही नहीं रहे; अत: यह कहना कि मुनिराज विष्णुकुमार ने यह काम किया मात्र औपचारिक ही है; वास्तविक नहीं। ____ बावनिया का भेष गृहस्थ का था या मुनिराज का था ? उस भेष में उन्होंने छल-कपट किया, झूठ बोला। ये तो हमारे यहाँ प्रसिद्ध खोटे काम हैं, जो गृहस्थ के लिए भी करनेयोग्य नहीं हैं, जो हम और आप करें तो भी कोई अच्छा नहीं माने । पर हम उन्हीं कामों पर लट्ट हो रहे हैं। हम कहाँ खड़े हैं ? सवाल यह है। ___ उन्होंने यह काम अपना पद छोड़कर किया, इसका मतलब यह है कि वे मानते थे कि यह काम मुनि पद में करने योग्य नहीं है। बस बात रक्षाबंधन इतनी ही है कि उन्हें विकल्प आ गया और उसके लिए उन्होंने पद छोड़ा; जिसके लिए उन्हें प्रायश्चित्त लेना पड़ा, दुबारा दीक्षा लेनी पड़ी। __ अरे ! इससे बड़ा प्रायश्चित्त दुनिया में क्या हो सकता है कि दीक्षाच्छेद हो गई। क्या आप जानते हैं कि दीक्षाच्छेद का क्या मतलब है ? मान लो वे बीस वर्ष पुराने दीक्षित थे। उनके बाद के अबतक जितने भी दीक्षित मुनि थे, वे उन्हें नमस्कार करते थे और ये उन्हें धर्मवृद्धिरस्तु का आशीर्वाद देते थे। अब आजतक जितने भी मुनि दीक्षित हुए हैं, भले ही उनसे ही क्यों नहीं हुए हों, फिर भी उन्हें उनको नमस्कार करना पड़ेगा और वे उन्हें धर्मवृद्धि का आशीर्वाद देंगे। सम्पूर्ण वरिष्ठता समाप्त । किसी मुनिराज के लिए इससे बड़ा और कौनसा दण्ड हो सकता है? ध्यान रहे, मैं उनकी गलती नहीं बता रहा हूँ; मैं हमारे मन की गलती बता रहा हूँ कि हमने उनको पसन्द किया और उनके उस काम को पसन्द किया कि जिस काम को वे स्वयं पसन्द नहीं करते थे और उस काम को मुनिधर्म के पद के योग्य नहीं मानते थे। मुनिपद छोड़कर उन्होंने यह काम किया और इसके कारण हम उन्हें महान मानते हैं। उक्त सन्दर्भ में टोडरमलजी का निम्नांकित कथन दृष्टव्य है - "विष्णुकुमार ने मुनियों का उपसर्ग दूर किया सो धर्मानुराग से किया; परन्तु मुनिपद छोड़कर यह कार्य करना योग्य नहीं था; क्योंकि ऐसा कार्य तो गृहस्थधर्म में सम्भव है और गृहस्थधर्म से मुनिधर्म ऊँचा है; सो ऊँचा धर्म छोड़कर नीचा धर्म अंगीकार किया, वह अयोग्य है; परन्तु वात्सल्य अंग की प्रधानता से विष्णुकुमारजी की प्रशंसा की है। इस छल से औरों को ऊँचा धर्म छोड़कर नीचा धर्म अंगीकार करना योग्य नहीं है।" उनकी जिन्दगी का वह सबसे महान कार्य था या सबसे हल्का १. मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ : २७४Page Navigation
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