Book Title: Rakshabandhan aur Deepavali
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ 46 रक्षाबंधन और दीपावली जब देखा कि भगवान महावीर तो हम सबको यों ही छोड़कर चले गये हैं तो हाथ ढ़ीले पड़ गये और लड्ड वही गिर गये। हो सकता है इसी आधार पर लड्डु चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी हो; क्योंकि भगवान की पूजा तो अष्टद्रव्यों से की जाती है; अकेले लड्ड चढ़ाने की बात कहाँ से आई ? जो भी हो; पर लड्ड गोल होता है, मीठा होता है, सबको प्रिय भी होता है। गोल का अर्थ है आदि-अन्त से रहित; क्योंकि गोल पर हाथ फेरो तो उसका न तो कहीं आरंभ होता है और न कहीं अन्त आता है; इसप्रकार वह अनादि-अनंत है, अखण्ड है। अपना भगवान आत्मा भी अनादि-अनन्त है, अखण्ड है और अनन्त आनन्दमय होने से लड्ड की भाँति मधुर भी है और लड्ड की भाँति ही आराधकों को अत्यन्त प्रिय भी है। ___अत: लड्डु चढ़ाने का यही अर्थ हो सकता है कि हे भगवन् ! आप तो मोक्ष पधार गये; अब हम भी इस गोल, मधुर और सर्वप्रिय लड्ड को आपको समर्पित कर अर्थात् पंचेन्द्रिय विषयों को छोड़कर ज्ञान के घनपिण्ड, आनन्द के कन्द, अनादि-अनन्त भगवान आत्मा की शरण में जाते हैं। 5. प्रश्न : लक्ष्मीपूजा के बारे में आपको कुछ कहना है ? उत्तर : नहीं, कुछ नहीं कहना / कहें तो यह कह सकते हैं कि जब गौतमस्वामी को केवलज्ञान हुआ तो इन्द्रों ने आकर केवलज्ञान कल्याणक मनाया और केवलज्ञानरूपी लक्ष्मी की पूजा की; पर हम केवलज्ञान और केवलज्ञानी को तो भूल गये और रुपये-पैसेरूप लक्ष्मी की पूजा करने लगे। वणिक समाज इससे अधिक और कर भी क्या सकता था ? अरे, भाई! अज्ञान की महिमा भी अनंत है; इसके साम्राज्य में जो कुछ भी न हो जावे, कम ही है। 6. प्रश्न : अन्त में आपको कुछ कहना है, पाठकों के लिए कोई सन्देश देना है क्या ? उत्तर : अरे, भाई ! क्या कहना और सन्देश देनेवाले भी हम कौन होते हैं; फिर भी तुम सुनना चाहते हो तो सुनो - भगवान महावीर तो 2532 वर्ष पहले ही हमें छोड़कर चले गये। दीपावली : कुछ प्रश्नोत्तर गये सो गये, लौटकर आये ही नहीं और न कभी आयेंगे ही; अत: उन्हें बुलाने से तो कुछ होगा नहीं। अत: यह रट लगाने से क्या लाभ है किएकबार तो आना पड़ेगा और सोती हुई दुनियाँ को जगाना पड़ेगा भले ही वे चले गये हों. पर आज भी उनकी दिव्यवाणी शास्त्रों के रूप में विद्यमान है। उसके और उसके विशेषज्ञ ज्ञानी धर्मात्माओं के माध्यम से अपने आत्मा को जानो, आत्मा को ही अपना मानो और उस आत्मा में ही जम जाओ, रम जाओ; तुम भी उनके समान भगवान बन जाओगे। यदि शक्ति हो, साहस हो तो उनकी वाणी को जन-जन तक पहुँचाने का काम भी अवश्य करो / तात्पर्य यह है कि यदि शास्त्रों को पढ़ा सकते हो तो पढ़ाओ, प्रवचन कर सकते हो तो प्रवचन करो; यदि आप से यह संभव न हो तो जिनवाणी को छपाओ, छपाने में आर्थिक सहयोग करो; यदि यह भी संभव न हो तो उसे तन-मन से जन-जन तक पहुँचाने में ही सहयोग करो। तुम्हारा कल्याण अवश्य होगा। दीपावली महोत्सव मनाने का इससे अच्छा और कोई स्वरूप नहीं हो साता। इसप्रकार मैंने यह रक्षाबंधन और दीपावली के सन्दर्भ में समाज में प्रचलित परम्पराओं के सम्बन्ध में नया चिन्तन प्रस्तुत किया है। ___ आशा है पाठकगण ! प्रस्तुत विषय पर गंभीरता से विचार करेंगे तथा अपने जीवन में यथासंभव सुधार कर ही सकते हैं। यदि साहस की कमी से कुछ भी करना संभव न हो तो कम से कम सही बात समझकर अपनी समझ में सुधार तो करेंगे ही। जो लोग मेरे चिन्तन से सहमत न हो और जिन्हें इस प्रतिपादन से पीड़ा पहुँची हो; उनसे मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। विश्वास कीजिए उन्हें पीड़ा पहुँचाने के लिए यह उपक्रम नहीं है; अपितु सत्य वस्तुस्थिति को प्रस्तुत करना ही इसका उद्देश्य रहा है। . (26)

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24