Book Title: Rakshabandhan aur Deepavali
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 21
________________ ४० दीपावली रक्षाबंधन और दीपावली कुछ छीन लिया जाता था। फिर भी आजादी के दीवानों ने आजादी के झण्डे को गिरने नहीं दिया। तिरंगा झंडा लिए आजादी के दीवानों का जुलूस निकलता तो उसे तितर-बितर करने के लिए गोलियाँ चलाई जाती। जाते हुए जुलूस को पशुबल से रोककर झंडा लेनेवाले से कहा कि तुम वापिस लौट जाओ, अन्यथा मैं गोली मार दूंगा। एक, दो, तीन कहा और उसने उसे गोली मार दी। वह गिर गया, पर झंडा नहीं गिरा; क्योंकि उसी के साथी ने झंडे को थाम लिया। जब उससे यह कहा गया कि तुम वापिस जाओ, अन्यथा गोली मार दी जावेगी। मैं तीन तक आवाज लगाऊँगा, यदि फिर भी नहीं गये, झंडा नहीं झुकाया तो गोली मार दूंगा। ऐसा कहकर ज्यों ही उसने एक-दो-तीन कहना आरंभ किया तो वह आजादी का दीवाना बोला - क्या एक-दो-तीन करता है; गोली क्यों नहीं मारता ? अरे, तू यह भी नहीं जानता कि अभी-अभी तूने झंडेवाले को यही कहकर गोली मारी है और मैंने मरनेवाले के हाथ से ही झंडा थामा है। ___हमारा कुछ भी क्यों न हो; पर आजादी का झंडा नहीं गिरेगा, नहीं झुकेगा। आखिर तिरंगा लहराता ही रहा और अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। इसीप्रकार महावीर के झंडे को गौतम स्वामी ने थाम लिया। उसके बारह वर्ष बाद गौतम स्वामी का निर्वाण हुआ तो उसी दिन सुधर्मस्वामी को केवलज्ञान हुआ। इसीप्रकार उसके बारह वर्ष बाद सुधर्मस्वामी को निर्वाण हुआ तो जम्बूस्वामी को केवलज्ञान हुआ। ये तीन अनुबद्ध केवली कहे जाते हैं। उसके बाद यह झंडा श्रुतकेवलियों ने थामा और उसके बाद आचार्य कुन्दकुन्द जैसे अनेक समर्थ आचार्यों ने, महापण्डित टोडरमल जैसे अनेक ज्ञानी पण्डितों ने थामा तथा अब उसके भी बाद आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी ने यह झंडा थामा था और वह आज हमारे हाथ में है। हमारे हाथ का मतलब अकेले हमारे हाथ में नहीं, पण्डित हुकमचन्द के हाथ में भी नहीं; अपितु उन सब लोगों के हाथ में कि जो लोग महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुँचाने में जुटे हुए हैं, अहर्निश उसी में लगे हुए हैं। यह भी हो सकता है कि आप भी उनमें से एक हों। जिसप्रकार हम कहरहे हैं कि वहझंडा आज हमारे हाथ में है; उसीप्रकार आप भी कह सकते हैं कि वह झंडा हमारे हाथ में है; पर मात्र कहने से काम नहीं चलेगा, उसके लिये अपने जीवन का समर्पण करना होगा। हमारी माँ से सम्पूर्ण जगत माँ कहे तो किसी को क्या ऐतराज हो सकता है; पर हमारी पत्नी से अपनी पत्नी की बात कहे तो नहीं चलेगा। अरे, भाई ! महावीर की वाणी, जिनवाणी तो हमारी माँ है; सारा जगत उसे अपनी माँ माने तो हमें अपार प्रसन्नता होगी। ____ हम और आप व्यक्तिगत रूप से अकेले इतने समर्थ नहीं है कि इस गुरुतर भार को ढ़ो सके; इसलिए सबके सहयोग की परम आवश्यकता है। आओ, हम सब मिलकर इस भार को संभालें, इस महान कार्य को अंजाम दें; इसमें ही हम सबका भला है और दीपावली का वास्तविक उत्सव भी यही है। __ हमारी भावना तो बस इतनी ही है कि महावीर का झंडा झुकने न पावे; उनकी वाणी को जन-जन तक पहुँचाने का महान कार्य निरन्तर चलता रहेइस दीपावली के अवसर पर इससे बढ़िया श्रद्धांजलि और कुछ नहीं हो सकती। दीपावली मनाने का रूप ऐसा ही होना चाहिए कि महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुँचाने के कार्य में तेजी आवे। ___अधिक क्या ? समझदारों को इतना ही पर्याप्त है। (23)

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