Book Title: Rakshabandhan aur Deepavali
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 16
________________ ३० रक्षाबंधन और दीपावली अरे भाई ! मुनिपद तो उन्होंने छोड़ ही दिया था; पर यदि हम सहयोग करते तो वे निर्मल आचरणवाले श्रावक तो रह ही सकते थे। क्या यह हम सबका दुर्भाग्य नहीं है कि उन्हें ऐसा सब कुछ करना पड़ा, जो एक श्रावक के लिए भी उचित नहीं था। जिन्होंने घर-बार, पत्नी-परिवार सब कुछ छोड़ दिया; हम उन संतों को भी समाज के काम में लगाना चाहते हैं, उनसे ही अपने तीर्थों-मन्दिरों का उद्धार कराना चाहते हैं; अरे भाई ! यह तो गृहस्थों के कार्य हैं; इन्हें तो हम सबको मिलकर करना चाहिए। सन्तों से तो मात्र आत्मोद्धार में ही प्रेरणा लेना चाहिए, सहयोग लेना चाहिए; उन्हें इन कामों में उलझाना कोई समझदारी का काम तो नहीं है। ११.प्रश्न:भाई को राखी बाँधने और बहिन से राखी बंधवाने की बात तो इस कहानी में कहीं आई ही नहीं ? फिर इसे रक्षाबंधन क्यों कहते हैं ? उत्तर :रक्षा का भाव भी बंधन है, बंध का कारण है, यह बताने के लिये ही - इस पर्व का नाम रक्षाबंधन रखा गया हो तो भी कोई आश्चर्य नहीं। जो भी हो, पर इतनी बात नक्की और पक्की है कि यद्यपि मुनिराजों को शुभोपयोग भी होता है; परन्तु सर्वोत्कृष्ट मुनिदशा तो शुद्धोपयोगरूप ही है, आत्मज्ञानपूर्वक आत्मध्यानरूप ही है। शुभोपयोगीऔर शुद्धोपयोगी मुनिराज अलग-अलग नहीं होते । जब मुनिराज छठे गुणस्थान में रहते हैं, तब शुभोपयोगी होते हैं और जब वे ही मुनिराज सातवें या उसके भी आगे जाते हैं; तब शुद्धोपयोगी होते हैं। छठवाँ गिरने का गुणस्थान है और सातवाँ आगे बढ़ने का । छठवें गुणस्थानवर्ती मुनिराज अपनी तीन कषाय के अभावरूप शुद्धपरिणति के कारण और आगे के समस्त मुनिराज अपनी शुद्धपरिणति और शुद्धोपयोग के कारण परमपूज्य हैं, वंदनीय हैं, अभिनन्दनीय हैं। ___ अन्त में मैं आत्मध्यान में लीन अकंपन आदि सात सौ मुनिराजों और मुनिराज श्री श्रुतसागर एवं विष्णुकुमार के चरणों में शत-शत वंदन के साथ उक्त चर्चा से अभी विराम लेता हूँ। दीपावली अपनी प्रकृति से शाश्वत पर्व दीपावली से लगभग सभी भारतीय धर्मों ने अपना संबंध जोड़ रखा है। हिन्दु धर्म में श्रद्धा रखनेवाले कहते हैं कि दशहरे के दिन रावणवध करके और महासती सीताजी को वापिस लाकर भगवान श्रीराम आज के दिन अयोध्या वापिस आये थे तो उनके स्वागत में दीपावलियाँ की गई थीं और उनका जोरदार स्वागत किया गया था। उसी के उपलक्ष्य में यह दीपावली पर्व मनाया जाता है। आर्य समाजी कहते हैं कि आर्यसमाज के संस्थापक दयानन्द सरस्वती का स्वर्गवास आज ही हुआ था। इसकारण यह दीपावली पर्व मनाया जाता है। जैनियों के यहाँ तो यह बात न केवल पौराणिक आधार पर प्रचलित है कि आज के दिन भगवान महावीर को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी और उनके परमशिष्य प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी; अपितु इतिहास से भी यह बात प्रमाणित है। यह सब कुछ होने पर भी यह समझ में नहीं आता कि उक्त घटनाओं से तराजू की पूजा से क्या संबंध है, हिसाब-किताब का क्या संबंध है, लक्ष्मीपूजा के नाम पर पैसे की पूजा से क्या संबंध है ? उक्त घटनाएँ पूर्णतः सत्य होने पर भी लगता है कि दीपावली उसके भी पहले प्रचलित रही होगी। जो भी हो, हमारे इस आलेख का उद्देश्य उक्त सभी बातों की तह में जाना नहीं है। इसमें तो हम मात्र भगवान महावीर के निर्वाण और गौतमस्वामी को सर्वज्ञता प्राप्ति के सन्दर्भ में आज की जैन समाज में होनेवाली गतिविधियों और प्रसंगों पर मंथन करना चाहते हैं। (18)

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