Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
View full book text
________________
५० ]
[राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
चुत्रभुजा वर चुत्रभुज, प्रावध सजुत अनत ।
दाय्यो दरस बसदेवही, देव नमन विहसत ।। २ अन्त - जा हरिकी गम वेद नही अरु सेस महेस न पार लग्यो है।
जा हरि कारण मुनि तपेसुर, षोजन ही जुग बीत गय्यो है । ज्यो हरिनै क्रीपा करके नदके ऊर प्रान प्रोतार ठय्यो है।
भगतराम भणै ब्रीजमडलमै घर हा घर अोछव होय रय्यो है ।। ८ दुहा - घर घर भद्दी बधाहीय्या, मगल गाइी नार ।
ददकादम पेले सबै, अोछव भय्यो अपार ।। १ जनमबतीसी ग्रथ कर, ऊपज्यो इधक हुलास ।
भगतराम भय त्रास तज, कर हरचरण नीव स ।। २ सपुर्ण । स० ९७९५ रा भाद्रवा सुद १ सुनी लीषतु पचोली गुलाबराय हरीदासोत ॥ श्री॥
२५०.
८७२२ द्रौपदी चउपई
प्रादि - ॥०॥ सकल जिणेसर वीर जिरण, जगनायक जगिसार ।
अष्ट कर्महे लइ हाथा निहण्या, दोष अष अट्ठार ॥ १ वाणी योयनगामिनी, बुद्धि अगि विशाल ।
ए अध्ययन सोलमिइ भाषि प्ररथ रसाल ॥ २ अन्त - एय चरित्र सभलीय, भवीय तप सयम धरिवु ।
चुथा व्रत पालवा काजइ परमादन करवू ।। ८६ जिम अध्ययन सोलमिए, अगि छति जेहुवु । चुपई माहि मि कहिउ, ए पदोनि तेहवु ॥ ८७ भणयो गुणयो करी ववेक, मि भाषिउ भोलि ।
मिछा दुक्कड दिउ त्रि सुधि, जो बालिउड हलिं ॥८८ सवत १६५२ वर्षे फागण वदि १४ बुधे लग्वत इति श्री द्रूपदीनी चुपइ सपूर्ण ॥ समाप्त ॥
२७६ ८२५२ दूहा सोरठा किसनियारा प्रादि- अथ दुहा सोरठा किमनीयाका
पय तूडणी भरेह, दारू ताय आष दुनी। कुसगत कलक चढेह, काने रहजे किसनीया ॥ १ हाथी जाए हेक, लष कूकर लारा लवे।
वडपण तणे बवेक, कोई न षी कीमनिया ॥ २ अन्त - राम तणे या रीत, लषीयोलो पाए नही।
पोते राष परतीत, करमी पोहतो किसनीया ॥१८

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74