Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 65
________________ राजस्थानी हस्तलिखित-ग्रन्थ-सूची, भाग-२] [ ५५ ५१६ ८६४१ रसरतनागर [रसरत्नाकर प्रादि - ॥अथ रमरत्नाकर निप्यते ।। दोहा - अलप निरजन एक है, दूजा जाने कोइ । वै काहू कीना नई, वह कीना सब कोइ ॥१ चौपई- महमद नवी दीपत उजियारा। जाकै हेत रच्यो ससारा । पुनि ता मित्र च्यारि विधि कीये, पथ चलावनकु पठये ॥२ अन्त - गवक मारि धूलि करि लीजै। सो गधक पागमै दीजै ॥ पारो मरकै होवै बा[वा]र। सोवन होन न लगावै वार ॥ अर्थ - गधक मामला सामने एक मो पूट काजीकी दीजै। तव गधक मर। ते गवक पारो स्म[मम] मात्रा परलाय मीशी भर चढावीज । अग्नि पोहर १२ दीजै । पीत भवति ।। पु ५२६ ६४८० गजा भोजरास आदि - दाहा॥ श्री समर पासना, पाय कमल पणमेवि । सदगुरू चरणइ चित धरी, वलि सरसति समरेवि ॥१ मानिवकारी वलि सगुरू, प्रणमु परमानद । युग प्रधान जिनदत्त गुरू, श्री जिनकुसल सुरिंद । अन्त - श्री षरतरगछि जाणि दिणद, श्री जिन माणिक्य सुरिदाबे । [१२] तास मीम वाचक वरदाई, कल्याण धार कहाईवे ॥१३ . विनेय तास वाचक पद वागवे, कल्याण लाभ हितकारीवे।[१४] ते मह गुरुना प्रणमीया, व कुशलधार उवकायाबे ॥१५ सवत सतरह मय गुगगतीमं, माह वदि तेरस दीसैवे ।। [१६] पचम पड ययौ इहा पूरो, श्री मोजित नगर मनूगवे ।। [१७] श्री जिनचदसूरि गुर राज, रच्यो रास सुप काजवे ॥ [१८] शिप्य ध्रममागर प्राग्रह करिन, प्रा रची वान मुष घरिवैवे ॥ [१६] आगे का अश त्रुटित है। ५३३ ६१२८ राधावल्लभका ख्याल (ष्यालायत) आदि- श्री गधावल्लभोजयति । अथ प्यालायत लिप्यते । परभातका ख्याल मुतडीने काहि न छेडो रूडा म्हानै आलसियो आवै । द्रिग ह्यि म्हारा पगा छुवायौ या नही वान महाव ॥१ हो लाडीजी थारी प्रो काई किसडी मुभाव । पिय प्राधीन रहैं कर जोड्या तोही भौह चढाव ॥ २

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