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[ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान अन्त - ॥ छद ।। मिल राव पतिसाहि, छीर ज्यौ नीर बहाये ।
जो पारसको मिलत लोहो, कचन हो पाये ।। अलादीन हमीर से हये न अब कोई होय ।
कवि महेस ईम उचर[२] वे बसे सुरग सब कोय ॥ ३६५ ॥ दोहा । कवि महेस बनने [वर्णन]कीयो, रासो राव हमीर ।
भूल चूक ज्यौ होय तो, माफ करो तकसीर ॥ ३६६ ईती श्री राव हमीरको रासो सपूर्ण। लीखीत नाजर न[न]णसुष न बाच बच्यार सुज्या राम राम राम राम बचजो जी ।।