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राजस्थानी हस्तलिखित-ग्रन्थ-मूची, भाग-२ ] अन्त - राजभृत्य होय ते ममुझइन लीजिय ।।
जू मत्रीजन होय सो अवस्य पहचानिये ॥ ४ दोहा॥ सवत अठारह से वितेचौपन मृगसर मास ।
शुक्ल पप्य एकादसी, कीनो ग्रय प्रकाम ।। ५ चौपही। कृपणदुगमैं अथ बनायो । जैसी मति मेरीमै प्रायो।।
नप वहादुरकै विरद कुमार । तिनकै सिंघ प्रताप निहार ।। तिनके कवर दोय सुषदाई । इक कल्यान अरु केमरभाई ॥
तिनकै मत्री नीति प्रकास । विचौ नथ यह जोगीदास ॥ इनि श्री सत्रुभेद अथ मौहतौन जोगीदाम कृत सपूर्णम। शुभमस्तु । सवत १८६२ कातिक वदि १२।
विशेष प्रस्तुत रचना किशनगढ नरेश महाराजा बहादुरमिह के पौत्र कल्याणसिंह और कमरसिंह के मत्र जोगादास मोहनीत कृत है और रचनाकाल के ८ वष पश्चात् लिखित होने से महत्त्वपूर्ण है।
७५१. ८६१५ सूर्यनाथमगल, वैद्यक प्रथ आदि - । श्री गणेशाय नम ॥ अथ मूर्यगथमगल वैद्यक प्रथमेयि[थी] चिकित्सा
निप्यते । पहले -न व्यके वह, ज गान्त्र विचार
किर अशाध्यके दोहरे, अब कह्यि नीरभार ॥ १ अन - निब त्वचा प पनि वामी पागीमू नेत्राजन जल प्रवाह] हाय
मम • निलो यथा पाउ निबका रममू लावै वीमचा द्राद जाय । इति श्री दीपनाथ सिाय रूपनाथ जोगीस्वर निर्वाण विरचिताया रूपनाथ मगल समाप्त । मकन १९०८ भादवा बुदि ७ सोमवासरे लिखित ब्राह्मण छोटेलाल पठनार्थ पडत भगवानदासज'।
९४२२ हमीर रासो
आदि - ॥ श्री गणेशाय नम। ] । श्री सरस्वतीन्म [नम.] । श्री मुग्भ्यो
नम श्री गुरुभ्योनम ] अथ हम्मीररोसो लिक्षते [लिष्यते ॥ दोहा । श्री गनेस गुरू सरस्वती, बुधि बानीके दानि ।
कवि महस स बरनन करत, हट हमीरको जानि ॥ १ पहिले साहि सुमरियै, सवको मिरजनहार । प्रादि स्वाना अम्विका[अम्बिका], या गा] रदै सुरति सम्हार ।