Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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५४ ]
[ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
अन्त - कलस । भेद सयम तरणा चित श्रारणे । मान सवत तणु एह जाणे । वरस बत्रीसनु वरगमूल । भाद्रवे थुण्या प्रभु सानुकूल ॥२७ इति श्री भमरगीत टोडरबध नेमजी स्तवन सपू[र्ण ] ॥
४७१.
७६३४ महा
आदि - || || श्री सारदाजौ [जी] नम । दृहा । राग बन्यासी । जिण चउवीसइ पय नमी, गरगहर गोयम पाय ।
करि कवित रूलीयामनउ, गुरू सरसुति सुपासाय ॥ १
अन्त जीपी मय रेहा राषवी । जिरिए सासनि महिमा दाषवी ।
मन रेहा सुरिण तु माहा सती । करउ मगल जयवती सती । पनरह सइ सात्रीसइ वरिसि । एह प्रबंध कोधु मनि हरमि । वाचक मतिशेषर इम कहइ । भरगइ गुणेइ ते सर्व सुष लहइ ।
इति शील विषये मयारेहा महासती प्रबंध समाप्त ग्रथा ग्रग्रंथ ५०० । श्री० श्री० श्री० श्री० श्री० श्री० श्री० श्री० ।
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५०२
८५६२ (४) मोकमसिंघ सगतावतरो गीत
माहाराजा मोकमसीघजी सगतावत भीडरराज गारो गीत भीमजी प्रढ्या [ढा ] रो कह्यो छे । गीत जका जगाणी जीहान बीची, जुगा च्यार ताइी जाता । घरणी घाट बीच बाता, घडाणी प्रवेस |
पुराणे सम [भ]ली कथा राषरो[ष्यो] अणी प्राणी, माहावीर कादसी तारणी मोहकमेस || १
बीषमी सतारा जेण, धारी देवा दारणवासु, भोम काज भारी भारी माडाणा भारथ । फेरवा पडेवा सीधा सा धका नइ कारी, नी डीकतारी घारी सगतारा नाथ ॥२ जागरा प्रवीण तोतो मंडली माडारण जाणो, भाणरो न अण्यो मन ब्रमा भवेस । ६सु देस दसु द्रगपाल ते,
का अग्र पुसालरा तो दीसा प्रदेस ॥ ३ सोर जोर तेज ताप, साम काम सामरै सुमद्र, नेकी क थारी मोहकमेस थारी नेकी, उच्चार भुजा राषि सदा का ओकी,
नेकी बीना का श्रेकी कीसार नीरद ॥४
स्थान है।
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गीत शुद्ध लिखा हुआ है । भीडर उदयपुर के समीप शक्तावतो का एक प्रमुख

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