Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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५२ ]
[ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
निरूपन नाम पचमो तरग ।। ५ ।। सवत १९२० पौस सुदि १५ लिपिकृत रामदास काबीरपथी | सतनाम कवीरकी दया सत सह ॥
४२५
आदि - अथ फूलीबाई की परची लिषते ॥
चौ० ॥ हूँ मलघारी परणी जु नाही । पारब्रम पत मेरै माहि । सो कह जनमै म जुनाहो । सुष सागरउ सदा रहाही ॥। १ साषी । जानी आया गौरव, फूली कीयौ बिचार |
सब सतारो साहित्रो, सौ मेरो भरतार ॥२ अन्त के करीऐ उपाय बोहो, कहै लीजो येक राम । पूलीका सब ही सरया, मना मनोरथ काम || ७० चौपाई ॥ मम रसावण पूली पीयौ | सतगुर की सोई हम कीयो । रामजी सौदूजी नही कोई । पूली सब जुग देष्यौ जोई ॥ ७१ इति श्री पूलीबाई की परची सपूर्णं ॥
८८३१ बडी ब्रह्मचरी
||०|| गोयम गरणहर पाय प्रणमी करी । ब्रह्मव्रत तवस्यउ हरष हीयइ धरी ॥ सूघउ पाली भवसागर तरी । पामी पामइ पामिम्यइ शिवपरी ||
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४२७.
आदि
अन्त -
८४९८ (३) फूलबाईकी परच
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एक कह हुवसइ आधइ कर्म्मग्रच्छि सुध्ध करइ । अनादि नइ अनत च उगइ काल अनतउ सचरइ ॥ श्रीपासचदसूरिंद सीमइ श्रीसमरसिंघ इम उचरइ । इद्री ताउ करइ सव रहेला शिवरमरणी वरइ ॥ इति श्री वडी ब्रह्मचरी समाप्त ॥ श्री ॥
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१०१६० बीकाजी तमासा
४३६
श्रादि - श्री गनेसाई नमै । तमासो बीकाजीको लीषते ।
प्रायो र मेरा चाच बोहोरा, आया ₹ बोरीका बोरा ।
साजी परन्या छो क कवारा ।
सा परन्यो तो छो पनी सानी मरी गई ।
साजी था को तो फेरू परना द्या ।
हा साब रषबदेवजीकी दुहाई, ब्याव करो तो बडी बात करो ||
ख्याल ( तमासा) अपूर्ण लिखित है । श्रागे " जोगीको तमासो", "कृष्ण-ललिता वचन" प्रादि लिखित हैं ।

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