Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ [ ५३ राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची, भाग-२ ] ४४० १००५१ (१६) भवरारी सज्झाय आदि - श्री गणेमाये नम ॥ भुलो मन भवरा काइ भमो। भम्यो दिवस ने रात, मायारो वाव्यो प्राणीयो। भुलो परम लजाय, भूलो मन भवरा काई भमे ।। अन्त - केई चाल्या केई चालसी, केई चालण हार । रात दीवस वाटे वहे, परषो नही रे लीगार ॥ भुलो० मेहमाद कहे वमनु बोरीयो, जे कोइ आवे रे साथ । प्रापरणा काज काढवो, लेपो माहिब हान ॥ भूलो० ईनी भवरारी समाय मापूरण । ४४१ ८४९८ (१) भक्तविरदावली ग्रथ का प्रादि भाग त्रुटित है अन्त - भगतविछल भगवान, वेद सतन मिल गायो। पडी भगत म भीड, जहा प्रभु आप ज आयो। सुरति ममथ अरु जग कहै, अघमोचन भगवान । यू दास चरणके सरण पड्यौ है, बिडद तुम्हारो जान ॥१६ इति भगत-बिदावली सपूर्ण ४४२ २५६१ (३) भगति भावती प्रथ आदि - रामजी मति है जी। श्री गुरु भ्याय न्म ।। अथ भगति भावति लिषत। सब सननकु नाउ माथा । जा प्रमादतै भयो सुनाथा ॥ भो जल पार गयौ को चाहै । तो सत चरण रज सीस चढावै ॥१ अन्त - दोहा। नमह राम रामानद, नमह अनतानद। चरन कवल रज सीरि घरे, परप[म] नगसानद ॥२८४ हीति श्री भगति भावती गर्थ (ग्रथ) समापत। सबत ७१५४ [१७५४१] बरषे सावरण मुधि एकादमी बार सोमाहवार [सोमवार] लीपत स्यामी गरबादासजीका सिष रूपदासजी ।। जगनाथ पठनारथे । ४४८ ___१०१८० (३७) भमर गीता प्रादि - समुद्रविजय नृप कुल तिलो [तिलक], मान शिष्यदे नद । बालब्रह्मचारी सदा, नमीह नेमि जिणद ॥१ तरिथकर बावीसमो, यादवकुलसिणगार । राजमती-मन-वलहो, करुणारस भृ गार ॥२

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74