Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची, भाग-२ ]
४४० १००५१ (१६) भवरारी सज्झाय आदि - श्री गणेमाये नम ॥
भुलो मन भवरा काइ भमो। भम्यो दिवस ने रात, मायारो वाव्यो प्राणीयो।
भुलो परम लजाय, भूलो मन भवरा काई भमे ।। अन्त - केई चाल्या केई चालसी, केई चालण हार ।
रात दीवस वाटे वहे, परषो नही रे लीगार ॥ भुलो० मेहमाद कहे वमनु बोरीयो, जे कोइ आवे रे साथ । प्रापरणा काज काढवो, लेपो माहिब हान ॥ भूलो०
ईनी भवरारी समाय मापूरण । ४४१ ८४९८ (१) भक्तविरदावली
ग्रथ का प्रादि भाग त्रुटित है अन्त - भगतविछल भगवान, वेद सतन मिल गायो।
पडी भगत म भीड, जहा प्रभु आप ज आयो। सुरति ममथ अरु जग कहै, अघमोचन भगवान । यू दास चरणके सरण पड्यौ है, बिडद तुम्हारो जान ॥१६
इति भगत-बिदावली सपूर्ण ४४२ २५६१ (३) भगति भावती प्रथ
आदि - रामजी मति है जी। श्री गुरु भ्याय न्म ।। अथ भगति भावति लिषत।
सब सननकु नाउ माथा । जा प्रमादतै भयो सुनाथा ॥ भो जल पार गयौ को चाहै । तो सत चरण रज सीस चढावै ॥१
अन्त - दोहा। नमह राम रामानद, नमह अनतानद।
चरन कवल रज सीरि घरे, परप[म] नगसानद ॥२८४ हीति श्री भगति भावती गर्थ (ग्रथ) समापत। सबत ७१५४ [१७५४१] बरषे सावरण मुधि एकादमी बार सोमाहवार [सोमवार] लीपत स्यामी गरबादासजीका सिष रूपदासजी ।। जगनाथ पठनारथे ।
४४८ ___१०१८० (३७) भमर गीता प्रादि - समुद्रविजय नृप कुल तिलो [तिलक], मान शिष्यदे नद ।
बालब्रह्मचारी सदा, नमीह नेमि जिणद ॥१ तरिथकर बावीसमो, यादवकुलसिणगार । राजमती-मन-वलहो, करुणारस भृ गार ॥२

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