Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 02
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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* श्री * परिशिष्ट १
[कतिपय ग्रन्थो का विशेष परिचय] १८१ ८ ५६२ (८)* चौहान पृथीराजरो छद __ अादि - सिवि श्रीचुहारण प्रीथीराजरो छद भुजगी लिष्यो। गजनीरै पातसाह बध कीय्यी जदी करणा कीधी जणी सिम्यारो।
पर्यो गजनी बदनमे छ हथ । वीचार कर पाप करतुत पीथ ।। हण्यो दाम कहेत कैलास बारण । गज पुन च वट वैरी भराण ।। बदै क न कामा चषु पट गाढे । बिना दोम पढीर से भ्रत काढे ॥ वरजत चद चल्यो हु कनोज ।
जहा सूर सामत कट घट फोज ॥ अन्त - पवारै गिनाक कहा लग तोरे ।
का वीनती डीतनी हाथ जोरै ।। विसास नवि सभर विसारो। अन अपराध ग्रहक बीमारो॥ प्रब होय नीदे न देषो तमामो। ग्रह्यो ग्राह ज्यु गज मादी नीकामो ।। बिना राज साज करै कोन काज । नीभाहो बीरुद गरीब नवाज ॥ सदाडी कहावो कररणानीदान ।
करो प्राय महाय कहै चहुप्राण ॥ १ मपूर्ण ली० प० गुलाबराय हरीदास्नो [सोत] स० १७६७ वसे । १६१
८५६२ (8) जनमबत्तीसी अादि - दी। सिवस्ती श्रीगणेमाय नम । अथ जनमबतीमी लीप्यते । क्रत पचोली भगतरामजीरी । सन १७६५ रा भादवा वीद १३ रे दीन ग्रथ कीय्यो।
दुहा- मथुरा जनमे जगतपत, देवनभ अवतार ।
सकल वीसव सुषि अत भऐ, मुर नर जै जैकार ॥१ प्रथम सख्या सूचीके क्रमाङ्क और द्वितीय सख्या ग्रन्थाङ्क की सूचक है । कोष्ठक के अङ्क गुटका के अन्तर्गत रचना-सख्या के द्योतक हैं ।
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