Book Title: Pudgal Paryavekshan Author(s): Rameshmuni Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf View full book textPage 7
________________ जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य के संयोग की इस प्रक्रिया की यह विशेषता है कि वह संयुक्त होकर भी पृथक-पृथक होती है। जीव की प्रक्रिया जीव में और पुद्गल की प्रक्रिया पुद्गल में ही होती है। एक ही प्रक्रिया दूसरे में कदापि संभव नहीं है। और इस प्रकार एक की प्रक्रिया दूसरे के द्वारा संभव नहीं है। जीव की प्रक्रिया जीव के द्वारा ही, और पुद्गल की प्रक्रिया पुद्गल के ही द्वारा सम्पन्न होती है। लेकिन इन दोनों प्रक्रियाओं में से ऐसी कुछ समता, एक रूपता रहती है कि जीव द्रव्य कभी पुद्गल की प्रक्रिया को अपनी ओर कभी अपनी प्रक्रिया को पुद्गल द्रव्य की मान बैठता है। जीव की यही भ्रान्त मान्यता मिथ्यात्व है, अज्ञान रूप है। २० जीव और पुद्गल की इस संयोग प्रक्रिया के फलस्वरूप ही जीव और अजीव, पुद्गल आदि के अतिरिक्त शेष तत्वों की सृष्टि होती है। कुल मिलाकर नव तत्व इस प्रकार हैं । २१ १ जीव तत्व ! २ अजीव तत्व ! पुण्य तत्व ! ४ - पाप तत्व ! ३ २२ २३ - २४ २५ २६ २७ Jain Education International - ५ ६ ७ ८ - - - २२ २३ २४ उक्त तत्वों में पाँचवां तत्व " आश्रव" है। जीव से पुद्गल द्रव्य के संयोग का मूलभूत कारण है, जीव की मनसा, वाचा और कर्मणा होने वाली विकृत परिणति और इसी विकृत परिणति का नाम “आश्रव” तत्व है। जो परिणति अर्थात् भाव रागादि से सहित है, वह बन्ध कराने वाला है। और जो भाव रागादि से रहित है। वह बन्ध करने वाला नहीं है। जीव के साथ कर्म पुद्गल परमाणुओं का बन्ध जाना बन्ध है । अथवा कर्म प्रदेशों का आत्मा प्रदेशों में एक क्षेत्रावगाह हो जाना बन्ध है। जीव प्रकृति बन्ध और प्रदेश बन्ध को योग से तथा स्थिति बन्ध और अनुभाग बन्ध को कषाय से करता है । संक्षेप में कहा जाय तो कषाय ही “कर्मबन्ध" का मुख्यं हेतु है। कषाय के चार भेद हैं -क्रोध, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, श्लोक नं. १२ ! आचार्य अमृत चन्द्र २५ २६ २७ २० २१ ९ मोक्ष तत्व ! क- स्थानांग सूत्र, स्थान- ९ सूत्र. ६६५ ! ख- उत्तराध्ययन सूत्र- अ- २८ सूत्र. १४ ! भगवती सूत्र- श. १६ उ. १ सूत्र. ५६४ ! क- समवायांग सूत्र - समवाय-५ ख- सर्वार्थ सिद्धि ६/२ ! ग- सूत्र कृतांग कृत्ति- २/५-१७ आचार्य शीलांग ! घ- अध्यात्म सार - १८ / १३१ ! समय सार- १६७ ! राजवार्तिकि १, ४, १७! पंचम कर्म ग्रन्थ गाथा- ९६! क- स्थानांग सूत्र- स्थान २ ! उद्दे. - २ ख- प्रज्ञापना पद २६ सूत्र- ५ आश्रव तत्व ! बन्ध तत्व ! संवर तत्व ! निर्जरा तत्व ! - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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