Book Title: Pudgal Paryavekshan
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 16
________________ परमाणु स्कन्ध रूप में परिणत होते हैं। तब उन की दस अवस्थाएँ हैं, कार्य हैं, उन के नाम इस प्रकार हैं। ६१ १ - शब्द! ६ भेद! २- बन्ध! ७ - अन्धकार! ८ - छाया! ४ - स्थूल! ९ - आतप! ५ - संस्थान! १० - उद्योत! १ - शब्द - एक स्कन्ध के साथ दूसरे स्कन्ध के टकराने से जो ध्वनि उत्पन्न होती है। वह शब्द है। ६२ संक्षेप में शब्दों को तीन वर्गों में रखा जा सकता है। भाषात्मक, अभाषात्मक और मिश्र। विस्तार से, शब्द के मूलतः दो भेद होते हैं और दोनों के दो-दो प्रभेद तथा द्वितीय भेद के प्रथम प्रभेद के भी चार प्रभेद होते हैं। ६३ भाषात्मक - इस वर्ग में मानव और पशु-पक्षियों आदि की ध्वनियाँ आती हैं। इस के दो प्रकार अभाषात्मक - शब्द क इस वग म प्रकृतिजन्य आर वाधव अक्षरात्मक - ऐसी ध्वनियाँ इस वर्ग के अन्तर्गत आती हैं। जो अक्षरबद्ध की जा सकें, लिखी जा सके। अनक्षरात्मक - इस वर्ग में रोने-चिल्लाने, खांसने, फुसफुसाने आदि की तथा पशु-पक्षियों की ध्वनियाँ आती हैं, इन्हें अक्षर बद्ध नहीं किया जा सकता। के इस वर्ग में प्रकृतिजन्य और वाद्ययन्त्रों से उत्पन्न होने वाली ध्वनियाँ सम्मिलित हैं। इस के भी दो वर्ग हैं - १- प्रायोगिक अभाषात्मक! २ . वैस्त्रासिक अभाषात्मक। वाद्ययन्त्रों से उत्पन्न होने वाली ध्वनियाँ प्रायोगिक हैं। यह प्रायोगिक शब्द चार प्रकार का है। तत वर्ग में वे ध्वनियाँ आती हैं, जो चर्म तनन आदि झिल्लियाँ के कम्पन से उत्पन्न होती है। तबला, ढोलक, भेरी आदि से ऐसे शब्द उत्पन्न होते हैं। वितत शब्द वीणा आदि यन्त्र-यन्त्र में, तन्त्री के कम्पन से उत्पन्न होते हैं। धन शब्द वे हैं, जो ताल, घण्टा आदि धन वस्तुओं के अभिघात से उत्पन्न हों, ६१ क- उत्तराध्ययन सूत्र -अ. २८ गा. १२-१३ - सत्वार्थ सूत्र -अ. ५ सू. २४ गं- द्रव्य संग्रह, गाथा -१६! ६२ चास्तिकाय -गाथा -७१! ६३ : तत्वार्थ राजकार्तिक अ.५. सू. २४! nahana K Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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