Book Title: Pudgal Paryavekshan
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ ५- कार्मण वर्गणा - जीवों सत् व असत् क्रिया के प्रतिफल में बनने वाला पुद्गल समूह ! ६- श्वासोच्छ्वास वर्गणा आन प्रान योग्य पुद्गल समूह ! ७ - भाषा वर्गणा - भाषा के योग्य पुद्गल समूह ! ८ - मनोवर्गणा - चिन्तन में सहायक बनने वाला पुद्गल समूह ! प्रथम की चार वर्गणाएं अष्ट स्पर्शी स्थूल स्कन्ध है। वे हल्की भारी, मृदु-कठोर भी होती है। कार्मण, भाषा और मन ये तीन वर्गणाएँ चतुःस्पर्शी सूक्ष्म स्कन्ध है । इन में केवल शीत, ऊष्ण, स्निग्ध, और रुक्ष ये चार ही स्पर्श होते हैं। गुरु, लघु, मृदु और कठिन ये चार स्पर्श नहीं होते हैं। श्वासोच्छ्वास वर्गणा चतुःस्पर्शी और अष्ट-स्पर्शी दोनों प्रकार के होते हैं। पुद्गल द्रव्य की संख्या, क्या परमाणु और क्या स्कन्ध, सभी के रूप में अनन्त हैं। एक पुद्गल, दूसरे पुद्गल से स्पर्श, रस आदि किसी न किसी कारण से भिन्न या असमान भी हो सकता है। अतएव हम कह सकते हैं कि पुद्गल भी अनन्त है। ५८ ५९ ६० प्रत्येक द्रव्य का अपना कार्य होता है। इस कार्य को उपकार या उपग्रह भी कह सकते हैं। यह उपग्रह पुद्गल द्रव्य अपने स्वयं या अन्य पुद्गल द्रव्यों के प्रति तो करता ही है, जीव द्रव्य के प्रति भी करता है। उक्त द्रव्य जीव द्रव्य का उपग्रह भी अनेक रूपों में करता है। वह जीव के अनुसार कभी शरीर तो, कभी मन, कभी वचन तो कभी श्वासोच्छ्वास के रूप में अपने स्वयं का परिणमन करता हुआ, उस परिणमन के माध्यम से जीव द्रव्य का उपग्रह करता रहता है। सुख-दुःख, जीवन और मरण के रूप में भी पुद्गल द्रव्य, जीव द्रव्य का उपग्रह करता है । पुद्गल द्रव्य के द्वारा जीव द्रव्य के उपग्रह का यह अर्थ कदापि नहीं है कि पुद्गल द्रव्य की जीव द्रव्य में कोई प्रक्रिया या परिणमन किया कराया जाता है। इस का अर्थ, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, केवल यही है कि जीव द्रव्य का परिणन जीव द्रव्य में पुद्गल द्रव्य का परिणन पुद्गल द्रव्य में होता है लेकिनं संयोगवश दोनों के परिणमनों में, स्वभावतः, ऐसी कुछ समानता अथवा एक रूपता बन पड़ती है कि हम जीव द्रव्य को लगता है कि यह परिणमन हम में जीव द्रव्य हो रहा है। वास्तव में ऐसा नहीं है। जीव द्रव्य का परिणमन उसके अपने उपादान या अन्तरंग कारण पर निर्भर है। पुद्गल द्रव्य तो केवल निमित्त हैं, और बाह्य कारण अवश्य है । किसी भी द्रव्य का स्वरूप ही यह है कि उस में गुण और पर्याय हों, विश्लेषण हो चुका है, पर्यायों के विषय में विचारणा यहाँ की जा रही है। यों तो, द्रव्यों की भांति अनन्त पर्याय हैं, तथापि कुछ प्रमुख पर्यायों की चर्चा यहाँ की जाती है, जो इस प्रकार हैं। ५८ ५९. ६० Jain Education International भगवती सूत्र -२ !१! भगवती सूत्र - श. १३, उद्दे १४ सू. ४८१ ! तत्त्वार्थ सूत्र - अ. ५, सू. २० ! (४८) पुद्गलों के गुणों का पुद्गल द्रव्य के अन्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19