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परिभाषाओं के पर्यवलोकन से यह अति स्पष्ट हो जाता है कि इनमें मोक्ष के जिस स्वरूप पर बल दिया गया है, वह है आत्मा के अपने विशुद्ध और मौलिक स्वरूप की प्राप्ति है। ये परिभाषाएँ वास्तव में आत्मा के स्वभाविक अवस्था की विवेचना का सत्र रूप है। इसी सन्दर्भ में यह भी ज्ञातव्य है कि सम्यदर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र को संयुक्त रूप में मोक्ष का मार्ग बताया है। २५ ये तीनों मार्ग पृथक्-पृथक् नहीं है, अपितु समवेत रूप में कार्यकारी होते हैं। यह तीनों सम्मिलित रूप से अथवा मिलकर मोक्ष मार्ग किं वा मोक्ष प्राप्ति का साधन बनते हैं। विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य बात है कि इन तीनों सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र में से पृथक्-पृथक् कोई भी एक अथवा दो, मोक्ष की प्राप्ति नहीं करा सकते हैं, तीनों का साहचर्य नितान्त आवश्यक है।
पुद्गल क्या है? हम यह स्पष्ट रूपेण जान चुके हैं कि वह एक द्रव्य है। उस के परमाणु-परमाणु में प्रति समय उत्पाद-व्यय और घौव्य की अखण्ड प्रक्रिया वर्तमान है। इस प्रक्रिया की दृष्टि से, जितने भी पुद्गल हैं, चाहे वे परमाणु -के रूप में हो, चाहे स्कन्ध के रूप में हो, सब एक समान है। उन में भेद या वर्गीकरण को अवकाश ही नहीं है। अतएव हम स्पष्ट शब्दों में कह सकते हैं कि द्रव्य दृष्टि से पुद्गल का केवल एक ही भेद है, या यों कहिये कि वह अभेद है। पुद्गल का अधिक सरल वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है -जिस से पुद्गल का स्वरूप अति स्पष्ट होता है।
प्रथम वर्गीकरण “परमाणु" है।
द्वितीय वर्गीकृत रूप “स्कन्ध” है। १ - परमाणु पुद्गल का वह सूक्ष्मतम अंश है। परमाणु अनन्त-अनन्त है। किन्तु उन में पार्थिव, जलीय, तैजस् और वायवीय जैसा कोई भेद नहीं है। ये तो, जैसा सहकारी वातावरण पाते हैं। स्वयं को तत्तत् रूप में बदल देते हैं। यानी जो परमाणु एक बार पार्थिव रूप में बदला है। वही परमाणु, दूसरी बार जलीय, वायवीय या तैजस् रूप में भी बदल सकता है। इसी दृष्टि से एक परमाणु में वर्ण, गन्ध, स्पर्श,
और रस की शक्तियाँ भी एक साथ समाहित रहती है। ये शक्तियाँ, प्रत्येक परमाणु में समान रूप से विद्यमान है और सामग्री के सहकारी के अनुरूप परिणाम को प्राप्त होती है। क्योंकि रस आदि गुणों को “रूप” के साथ अविनाभावी माना गया है। २६ यानी जिस परमाणु में रूप होगा, उस में रस, वर्ण, और स्पर्श भी निश्चित रूप से पाया जायेगा।
परमाणु के संघात से उत्पन्न होने वाले स्कन्ध आदि परमाणु से कुछ अंश में भिन्न है और कुछ अंश में अभिन्न है। भिन्न इसलिये होते हैं कि यह परमाणुओं का एक समूह होता है। अतएव प्रत्येक परमाणु का उस में अपना पृथक् अस्तित्व रहता है। परमाणु वह सूक्ष्मतम अंश है। जिस का पुनः अंश हो नहीं सकता। परमाणु का कदापि विभाजन नहीं किया जा सकता। अतएव वह अशेषः, अभेद्य, अग्राह्य,
क- तत्वार्थ सूत्र अ. १ सू. १ वाचक उमास्वाति ख- समयसार ४, १०! ग- स्थानांग सूत्र -३, ४, १९४ घ- उत्तराध्ययन सूत्र अ. २८ गा. १-३ ङ- आवश्यक निर्यक्ति गाथा -१०३! आचार्य भद्रबाह!
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सर्वार्थ सिद्धि -५/५!
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