Book Title: Pudgal Paryavekshan
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ १ २ - क्षेत्र परमाणु काल परमाणु ४ - भाव परमाणु - गुण ! ३ - - द्रव्य परमाणु - पुद्गल परमाणु ! आकाश प्रदेश ! समय! - - के ४८ मूल भेद चार हैं। और सोलह उपभेद ४९ होते हैं। परमाणु - पुद्गल अगं, अमध्य और अप्रदेश होते हैं। परमाणु सकम्प भी होता है और वह अकम्प भी है। कदाचित् वह चंचल होता है, कदाचित् नहीं भी है। उन में न तो निरन्तर कम्प भाव रहता है और न निरन्तर अकम्प भाव भी है। इसी सन्दर्भ में यह ज्ञातव्य है कि परमाणु स्वयं गतिशील है। वह एक क्षण में लोक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जो असंख्य योजन की दूरी पर है। चला जाता है। गति - परिणाम उस का स्वभाव धर्म है। धर्मास्तिकाय उस का प्रेरक नहीं है, सहायक है। गति का उपादान परमाणु स्वयं है। धर्मास्तिकाय तो उस का निमित्तमात्र है। चतुर्थ प्रकार भाव अणु यह दृश्यजगत् - पौद्गलिक जगत् परमाणु संघटित है। परमाणुओं से स्कन्ध बनते हैं। और स्कन्धों से स्थूल पदार्थ निर्मित होता है। पुद्गल में संघातक और विघातक ये दोनों शक्तियाँ विद्यमान हैं । पुद्गल शब्द में “पूरण और गलन” इन दोनों का मेल है। परमाणु के मेल से स्कन्ध बनता है। और एक स्कन्ध के टूटने से भी अपने स्कन्ध बन जाते हैं। यह गलन और मिलन की प्रक्रिया स्वाभाविक भी होती है और प्राणी के प्रयोग से भी है। कारण कि पुद्गल की अवस्थाएँ सादि, सान्त होती हैं, अनादि अनन्त नहीं ! पुद्गल में यदि वियोजक शक्ति नहीं होती तो सब अणुओं का एक पिण्ड बन जाता है और यदि संयोजक शक्ति नहीं होती, तो एक-एक अणु अलग-अलग रह कर कुछ नहीं कर पाते। प्राणी जगत् के प्रति परमाणु का जितना कार्य है, वह सब परमाणु समुदयजन्य है । Jain Education International ५०. स्कन्ध की परिभाषा इस प्रकार हुई है -दो या दो से अधिक परमाणुओं का पिण्ड “ स्कन्ध” कहलाता है। स्कन्धों को तीन वर्गों में रखा जाता है। “स्कन्ध” अनेक परमाणु जब एक समुदाय में आकर परस्पर सम्बद्ध हो जाते हैं। तब वे स्कन्ध कहलाने लगते हैं। स्कन्ध का खण्ड भी स्कन्ध कहलाता ५१ है। स्कन्ध का कोई भी अंश या खण्ड, जो अपने अंगी से पृथग्भूत नहीं हो वह स्कन्ध देश कहा जाता है। स्कन्ध या स्कन्ध देश का एक परमाणु जो अपनी अंगी से पृथग्भूत न हो, स्कन्ध प्रदेश कहलाता है। अथवा पुद्गल के परमाणु और स्कन्ध के रूप में दो भेद होते हैं। लेकिन ग्राह्य और अग्राह्य के रूप में भी दो भेद संभव है। पुद्गल के जो परमाणु जीव द्रव्य से संयुक्त होते हैं। उन्हें ग्राह्य कहा जाता है । ग्राह्य पुद्गलों के अतिरिक्त शेष सभी अग्राह्य हैं, उन्हें जीव ग्रहण नहीं करता है। जीव से उन का संयोग नहीं होता है। प्रवाह की अपेक्षा से स्कन्ध और परमाणु ये दोनों अनादि है, अपर्यवसित हैं। कारण यह है कि इन की सन्तति अनादि काल से चल रही है और चलती रहेगी। स्थिति की अपेक्षा से यह सादि सपर्यवसान भी है। इसी सन्दर्भ में यह एक ज्ञातव्य तथ्य है कि स्कन्ध द्रव्य की दृष्टि से सप्रदेश ४८ ४९ ५० ५१. तत्वार्थ सूत्र, अ. ५. सूत्र २६ भगवती सूत्र २०/५/१६ ! भगवती सूत्र २० / ५ / १ ! भगवती सूत्र, अं. ५ सूत्र- २६ ! (४५) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19