Book Title: Pudgal Paryavekshan
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 11
________________ ३८ अदाह्य और निर्विभागी ३७ है। परमाणु यदि अविभाज्य न हो तो उसे परम + अणु नहीं कहा जा सकता। इसी सन्दर्भ में परमाणु द्विविधता का सहज स्मरण हो आता है। परमाणु के दो भेद ये हैं । २ व्यावहारिक परमाणु ! १ - सूक्ष्म परमाणु ! ो कुछ ऊपर की पंक्तियों में निर्दिष्ट हैं। व्यवहार अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के समुदय से बनता ३९ है । वस्तुवृत्या वह स्वयं परमाणुपिण्ड है। फिर भी सामान्य दृष्टि से ग्राह्य नहीं होता और उस को अस्त्र-शस्त्र से तोड़ा नहीं जा सकता। उस की परिणति सूक्ष्म होती है। इसलिये व्यवहारतः उसे परमाणु कहा गया है। सूक्ष्म परमाणु द्रव्य रूप से निरवयव और अविभाज्य होते हुए भी पर्याय की दृष्टि से वैसा नहीं ४० है । उक्त तथ्य वस्तुतः महत्त्वपूर्ण है। उस में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श ये चार गुणों, गुणों के अतिरिक्त अनन्त पर्याय होते ४१ हैं। पर्याय की दृष्टि से एक गुण वाला परमाणु अनन्त गुणवाला हो जाता है । अनन्त गुण वाला परमाणु एक गुण वाला है। एक परमाणु वर्ण से, वर्णान्तर, गन्ध से गन्धान्तर, रस से रसान्तर और स्पर्श से स्पर्शान्तर हो जाता है। एक गुण वाला पुद्गल यदि उसी रूप में रहे तो जघन्यतः एक और उत्कृष्टतः असंख्य काल तक रहता है। द्विगुण से लेकर अनन्त गुण तक के परमाणु पुद्गल के लिये यह नियम है। बाद में, उन में परिवर्तन अवश्य होता है। यह वर्ण विषयक नियम गन्ध, रस व स्पर्श पर भी घटित होता है। ४३ यह कथन पूर्णतः यथार्थ है कि परमाणु इन्द्रिय ग्राह्य नहीं होता । तथापि अमूर्त नहीं है। वह मूर्त है, रूपी है। पारमार्थिक दृष्टि से वह देखा जाता है। परमाणु मूर्त होते हुए भी दृष्टिगोचर नहीं होता, इसका प्रमुख कारण उस की सूक्ष्मता है। केवल ज्ञान का विषय मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार के पदार्थ हैं। इसलिये केवली तो परमाणु को जानते ही हैं। इन्द्रिय प्रत्यक्ष वाला व्यक्ति परमाणु को नहीं जान सकता ४४ । परमाणु में कोई एक रस, एक गन्ध, एक वर्ण और दो स्पर्श अर्थात् स्निग्ध अथवा रुक्ष, शीत या ऊष्ण होते हैं । अणु के अस्तित्व का परिज्ञान, उस से निर्मित पुद्गल स्कन्ध रूप कार्य से होता है । परमाणु इतना सूक्ष्म होता है कि उस के आदि, मध्य और अन्त का प्रश्न ही नहीं उठता है। अणुका वर्गीकरण चार प्रकार से हुआ है, वे चार वर्ग इस प्रकार ४५ ४६ ४७ हैं। ३७. ३८ ३९ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७ Jain Education International क- भगवती सूत्र -५/७ ! ख- स्थानांग सूत्र स्थान -४! अनुपयोग द्वार सूत्र, प्रमाणाधिकार सूत्र - ३४० ! अनुयोग द्वार सूत्र - प्रमाणाधिकार सूत्र - १३४२ ! प्रज्ञापना सूत्र पद -५ स्थानांग सूत्र, स्थान -४! भगवती सूत्र ७/७ ! नन्दी सूत्र, सूत्र - २२ ! भगवती सूत्र - १८/८ तत्त्वार्थ राज कार्तिक अ. २ सू. २५ आचार्य अकलंकदेव ! तत्त्वार्थ राजवार्तिक - अ. ५ सू. २५ वां -१ भगवती सूत्र २० / ५ / १२ ! (४४) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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