Book Title: Preksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 14
________________ :१: प्रेक्षाध्यान : आधार और स्वरूप प्रेक्षा : अर्थ-व्यञ्जना __प्रेक्षा' शब्द ईक्ष् धातु से बना है। इसका अर्थ है-देखना। प्र+ईक्षा-प्रेक्षा। इसका अर्थ है गहराई में उतरकर देखना। विपश्यना का भी यही अर्थ है। जैन साहित्य में प्रेक्षा और विपश्यना-ये दोनों शब्द प्रयुक्त हैं। प्रेक्षा-ध्यान और विपश्यना-ध्यान-ये दोनों शब्द इस ध्यान-पद्धति के लिए प्रयुक्त किये जा सकते थे, किंतु 'विपश्यना-ध्यान' इस नाम से बौद्धों की ध्यान-पद्धति प्रचलित है। इसलिए "प्रेक्षा-ध्यान" इस नाम का चुनाव किया गया। दशवकालिक सूत्र में कहा गया है- “संपिक्खए अप्पगमप्पएणं" आत्मा के द्वारा आत्मा की संप्रेक्षा करो, मन के द्वारा सूक्ष्म मन को देखो, स्थूल चेतना के द्वारा सूक्ष्म चेतना को देखो। 'देखना" ध्यान का मूल तत्त्व है। इसीलिए उस ध्यान-पद्धति का नाम 'प्रेक्षा-ध्यान' रखा गया है। जानना और देखना चेतना का लक्षण है। आवृत चेतना में जानने और देखने की क्षमता क्षीण हो जाती है। उस क्षमता को विकसित करने का सूत्र है-जानो और देखो। भगवान् महावीर ने साधना के जो सूत्र दिए हैं, उनमें 'जानो और देखो' ये ही मुख्य हैं। 'चिन्तन, विचार या पर्यालोचन करो'-यह बहुत गौण और प्रारम्भिक है। यह साधना के क्षेत्र में बहुत आगे नहीं ले जाता। आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो'-यह अध्यात्म-चेतना के जागरण का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। इस सूत्र का अभ्यास हम श्वास से प्रारम्भ करते हैं। श्वास शरीर का ही एक अंग है। हम श्वास से जीते हैं, इसलिए सर्वप्रथम श्वास को देखें। हम शरीर से जीते हैं, आत्मा शरीर में है, इसलिए शरीर को देखें। शरीर के भीतर होने वाले स्पन्दनों, कम्पनों, हलचलों या घटनाओं को देखें। इन्हें देखते-देखते मन पटु हो जाता है, सूक्ष्म हो जाता १. यहां देखने का अर्थ आखों (चर्म-चक्षुओं) से नहीं, चित्त को देखना है। इसे अंग्रेजी में perceive कहते हैं, जिसका अर्थ है "to see with mind cye" Scanned by CamScanner

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