Book Title: Pravachan Saroddhar Ek Adhyayan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_5_001688.pdf View full book textPage 5
________________ १२४ ज्ञातव्य हैं इस काल में जब ग्रन्थों को हाथ से प्रतिलिपि तैयार कराकर उन्हें प्रसारित किया जाता था तब उन्हें दूसरे लोगों के पास पहुंचने में पर्याप्त समय लग जाता था। अत: प्रस्तुत कृति से सिद्धसेनसूरि को परिचित होने और पुनः उस पर टीका लिखने में पच्चीस-तीस वर्ष का अन्तराल तो अवश्य ही रहा होगा। अतः यदि टीका विक्रम की तेरहवीं शती के पूर्वार्ध के द्वितीय चरण विक्रम संवत् १२४८ में लिखी गई है तो मूलकृति कम से कम विक्रम को तेरहवीं शती के प्रथम चरण अर्थात् वि०सं० १२२५-३० में लिखी गई होगी। अतः प्रवचनसारोद्धार की रचना १२२५ के आस-पास कभी हुई होगी। प्रवचनसारोद्धार मौलिक रचना है या मात्र संग्रह ग्रन्थ ? प्रवचनसारोद्धार आचार्य नेमिचन्द्रसूरि की मौलिक कृति है या एक संकलन ग्रन्थ है, इस प्रश्न का उत्तर देना अत्यन्त कठिन है क्योंकि प्रस्तुत ग्रन्थ में ६०० से अधिक गाथाएँ ऐसी हैं जो आगम ग्रन्थों, नियुक्तियों, भाष्यों, प्रकीर्णकों, प्राचीन कर्म ग्रन्थों एवं जीवसमास आदि प्रकरण ग्रन्थों में उपलब्ध हो जाती हैं। प्रवचनसारोद्धार की भारतीय प्राच्य तत्व प्रकाशन समिति पिण्डवाड़ा से प्रकाशित प्रति में उसके विद्वान सम्पादक मुनिश्री पद्मसेन विजयजी और मुनिश्री चन्द्रविजय जी ने इसकी लगभग ५०० गाथाऐं जिन-जिन ग्रन्थों से ली गयी हैं, उनके मूल स्त्रोत का निर्देश किया है। इनके अतिरिक्त भी अनेक गाथायें ऐसी हैं जो आवश्यकसूत्र की हरिभद्रीयवृत्ति आदि प्राचीन टीका ग्रन्थों में उद्धृत हैं। पुनः पार्श्वनाथ विद्यापीठ के मेरे शिष्य डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय की सूचना के अनुसार प्रवचनसारोद्धार में सात प्रकीर्णकों की लगभग ७२ गाथाएँ मिलती हैं। कहीं-कहीं पाठ भेद को छोड़कर ये गाथाएं भी प्रवचनसारोद्धार में समान रूप से ही उपलब्ध होती हैं। इसमें देविदत्थओं की ७, गच्छाचार की १, ज्योतिष्करण्डक की ३, तित्थोगाली की ३२, आराधनापताका (प्राचीन ) की २०, आराधनापताका ( वीरभद्राचार्य रचित) की ६ एवं पज्जंताराहणा ( पर्यन्त - आराधना) की ४ गाथायें मिलती हैं। यह भी स्पष्ट है कि ये सभी प्रकीर्णक नेमिचद्रसूरि के प्रवचनसारोद्धार से प्राचीन हैं। यह निश्चित है कि इन गाथाओं की रचना ग्रन्थकार ने स्वयं नहीं की है, अपितु इन्हें पूर्व आचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों से यथावत् ले लिया है। मात्र इतना ही नहीं अभी भी अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनकी गाथा सूचियों के साथ प्रवचनसारोद्धार की गाथाओं का तुलनात्मक अध्ययन नहीं हुआ है। अंगविज्जा जैसे कुछ प्राचीन ग्रन्थों में और भी समान गाथायें मिलने की संभावना है इससे ऐसा लगता है कि प्रवचनसारोद्धार की लगभग आधी गाथायें तो अन्य ग्रन्थों से संकलित हैं। ऐसी स्थिति में नेमिचन्द्रसूरि को ग्रन्थकार या कर्ता मानने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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