Book Title: Pravachan Saroddhar Ek Adhyayan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_5_001688.pdf

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Page 25
________________ १४४ विवेचन है। अन्तिम २७६ वां द्वार सिद्धों के इकत्तोस गुणों का विवरण प्रस्तुत करता है। इस प्रकार यह विशालकाय कृति २७६ द्वारों (अध्यायों) में जैन दर्शन के २७६ विशिष्ट पक्षों के विवेचन के साथ समाप्त होती है। यही कारण है कि इस कृति को जैन धर्म दर्शन का एक छोटा विश्वकोष कहा जा सकता है। हमें यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता होती है कि प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर जैन दर्शन के इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ को हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित कर रही है। इससे जन सामान्य और विद्वत वर्ग दोनों का ही उपकार होगा। क्योंकि इसका हिन्दी भाषा में कोई भी अनुवाद उपलब्ध नहीं था। परम विदुषी साध्वी श्री हेमप्रभा श्री जी० म० सा० ने इस विशालकाय ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद करने का जो कठिनतर कार्य किया है, वह स्तुत्य तो है ही, साथ ही उनकी बहुश्रुतता का परिचायक भी है। ऐसे दुरूह प्राकृत ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद करना सहज नहीं था, यह उनके साहस का ही परिणाम है कि उन्होंने न केवल इस महाकार्य को हाथ में लिया, अपितु प्रामाणिकता के साथ इसे सम्पूर्ण भी किया। अनुवाद में उन्होंने मूल ग्रन्थ के साथ टीका को भी आधार बनाया है। इससे पाठकों को विषय को स्पष्ट रूप से समझने में सहायता मिलती है। __ अनुवाद सहज और सुगम है और सीधा मूल विषय को स्पर्श करता है वस्तुतः यह पूज्या साध्वीजी का जैन विधा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण अवदान है और इस हेतु वे हम सभी के साधवाद की पात्र हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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