Book Title: Prashnottar Ratna Chintamani
Author(s): Anupchand
Publisher: Jain Prasarak Gyanmandal
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( २ )
उत्तरः- वर्त्तमानकाले आ क्षेत्रमां कोइ तीर्थकर नथी. महाविदेह क्षेत्र - मां छे; पण त्यां जवानी आपणी शक्ति नथी.
८ प्रश्न - तीर्थरक्षक देवतानी सहाय्यताथी त्यां जइ शकाय के केम ? कोइ पूर्वे जइ आव्युं होय तो तेनुं नाम श्रापो.
उत्तर:- स्थूलभद्रनी बहेन बक्षाए पोताना भाई श्रीयकने पर्युषण पर्वमां शक्ति रहित छतां पोरषी, साढपोरषी श्रादि पञ्चख्खाण करावी श्राखो दिवस उपवास कराव्यो, श्रीयक क्षुधानी पीडा भोगवी तेज दिवसे मृत्यु पाम्यो यक्षा खेद पामी रुषिघात कस्यानुं प्रायश्चित लेवा संघ पासे गइ. शुद्ध भावथी प्रेरणा करेली होवाथी संघे प्रायश्चितनी ना कही. यक्षा संतुष्ट न थह अने श्री सीमंधरस्वामी पासे पूछी आववा आग्रह कर्यो, शासन देवीनी सहाय्यताथी यक्षा सीमंधरस्वामी पासे गई. भगवान् सीमंधरस्वामी प्रायश्चित न श्राप्युं, पण चार चूलिकाओ संभलावी. यक्षाए ए चार चूलिकाओ संघ पासे कही बतावी. संघे आचारांग अने दशवैकालिक सूत्रमां तेनी योजना करी. जे चार चूलिकाओ सांप्रत काले पण भावना, विमुक्ति, रतिकल्प अने विचित्रचर्या नामथी पूर्वोक्त बन्ने सूत्रोमां विद्यमान छे.
वली कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्र आचार्ये, पोते केटला भव- पछी मोक्षे जशे ? ते जाणवा सारु शासनदेवीने भगवान् सीमंधरस्वामी पासे मोकली हती. आ विगेरे अनेक दृष्टांतो विद्यमान छे.
९ प्रश्नः - तीर्थंकरन देव शा सारू मानवा ?
उत्तरः- दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय, वीर्योतराय, हास्य, रति, रति, भय, शोक, दुगंछा, काम, मिथ्यात्व, अज्ञान, निद्रा, अव्रत, राग अने द्वेष; आ अढार प्रकारनां दूषणो मनुष्य, तिर्येच, नारकी ने देवताओने रह्यां छे. तीर्थंकर देवमां एमांनुं एक पण दूषण नथी. जन्म मरण फरी करवानुं नथी. सर्वज्ञ छे, धर्मनो उपदेश करे छे. अनेक भव्य जीवोने तारे छे. वली तेमनां कहेलां आगम श्रवण करीए

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